SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ युक्ति एवं न्याय से ग्रंथों की प्रामाणिकता १. अपि पौरुषमादेयं, शास्त्र वेद् युक्तिबोधकम् | अन्यस्त्वार्थमपि त्याज्यं भाव्यं न्याय्ये कसेविना ॥ 1 प्रोमा २१९० — सामान्य पुरुष द्वारा कहा हुआ शास्त्र भी यदि युक्ति-युक्त सत्य का बोध देनेवाला हो तो वह ग्रहण कर लेना चाहिये । अन्य इसके विरुद्ध चाहे ऋषियोक्त भी क्यों न हो, त्याज्य है । २. पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद् वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ , हरि बन्ययोग० ३८ न तो मुझे महावीर का पक्षपात है और न कपिल आदि मतों से द्वेष है। जिसका वचन युक्तिसंगत है, उसी के वचन को ग्रहण करना चाहिए । ८५ केवलं शास्त्रमाश्रित्य न कर्तव्यो विनिर्णयः, युक्तिहीने विचारे तु धर्महानिः प्रजायते । —बृहस्पति केवल शास्त्र का आश्रय लेकर निर्णय नहीं कर लेना चाहिये,
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy