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वाग्भटालङ्कारः ।
यह
है कि या तो उन ( असंगति आदि) में चमत्कार ही नहीं होता अथवा के पूर्वप्रतिपादित कारों में समाविष्ट हो जाते हैं ॥ १४८ ॥ अथ रीतिद्वारमा
हे एव रीती गौडीया वैदर्भी चेति सान्तरे ।
एका भूयः समासा स्यादसमस्तपदापरा ।। १४६ ।। अवती भवतः । गौडीया वेदमाँ चेति । यतस्ते द्वे सान्तरे अन्तरसहिते पृथकतद्दर्शगति - एका लैटीय' उसमामा स्वास द्वितीया वैदमी असमस्तपदा अल्पसमासा भवेत् ।। १४९ ३।
गौड़ी और बंदों-ये ही दो ऐतियाँ हैं। बहुला होती है और दूसरी ( वैदर्भी ) रीति न्यून अथवा नहीं ही होती ॥ १४९ ॥
में
are गौडीयोदाहरणमाह
इनमें एक ( गौडी रीति ) समाससमस्त पदों की संख्या अस्पन्त
दर्पोत्पाटिततुङ्ग पर्वतशत प्रायप्रपाताहति
क्रूराक्रन्ददतुच्छकच्छपकुलङ्कारमोरीकृतः ।
विश्व वर्वरषध्यमानफ्यसः शिप्रापगायाः स्फुर
नाक्रामत्ययमक्रमेण बहुल: कल्लोलकोलाहलः ।। १५० ॥
भयं शिमापगायाः शिप्रानथा बहुल: कछोलकोलाहलो विश्वमक्रमेणाक्रामति । कीदृशः । वाटतं तुङ्गपर्वतशत याचापातस्य भाइत्या माइननेन क्रूरं यथा भवति तथाक्रन्दन्ते यानि तुछकच्छप कुलानि तेषां केकारशब्देोरीकृतः । कीदृश्या नद्याः । वर्वरवध्यमानपयसः । वर्वरी राक्षसः कोऽपि, अभ्यो वा कोऽपि महान् येन बध्यमानं पयो बस्यास्तस्याः । एषा बहुसमासा गौडीया रीतिः ।। २५० ।।
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बबर नामक राक्षस के द्वारा रोके हुए जल वाली सिप्रा नदी का, अभिमान से तखाये हुए ऊँचे-ऊँचे सैंकड़ों पर्वतों के प्रस्तरों के गिरने से ताड़ित होकर अत्यन्त कठोर नाव करता हुआ, बड़े-बड़े आकार वाले कटुओं के समूह की ध्वनि से घोर स्व करने वाला, चारों ओर फैला हुआ अत्यन्त विस्तृत लहरों का यह शब्द सहसा विश्व भर में फैल रहा है।
दमण- इस श्लोक में दीर्घ समासयुक्त पक्षों के होने के कारण गौडी रीति है ।। १५० ।।
अथ वेदमुदाहरा
विप्राः प्रकृत्यैव भवन्ति लोला लोकोक्तिरेषा न सृषा कदाचित् ।
यशुध्यमानां मधुपैर्द्विजेश: लिव्यत्ययं कैरविण करायैः ।। १४१ ।।
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