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धण अज्जिय भुंजिसु विउलभाय चितित्तु एणिपरि सप्पमाय । वणगहण भमिर अह भमर जेम, सेा भविषय सोहिण एम तेम ॥ ६५ ॥
मरिण पत्त धूमप्पभाइ, जिहिं दुवखलक्ख अस्संखयाइ । भव भमिय तओ अंजणगिरम्मि, केसरिकिसोर हृप कंदरस्मि । ६६ । इकठाणकज्जि दो विहु भिड़ंति, नरयमि च यति उट्टिय उपभूयंग हूय, निहिकज्जाई झुञ्झई सुप्यभूय ॥६७। || घात ।। पाविय पंत्रत्तण रोरुवसग्गिण, उज्झता पत्ता नरय। धूमप्पना मिहिं दुक्खह ठामिहिं तत्तो भव भमडई बहु । ६८ । उववन्न अहो वणियस्स भज्ज, ते मित्त दुन्नि कम्मिहि अणज्ज । निहणम्मि गए नाहम्मि ते य, कलहं कुणंति घरधणकए ये ॥६९॥ झुज्झित्तु छट्ठपुढवीय पत आजीविय बहु पावप्यसत्त । अंह भमिय भवंतर भूरिभेय, निवइस्स जाय नंदण दुवे य ।। ७० ।। नियमरहि रज्जि अईव लुङ, अनुन करिय समरं विमुद्ध । उप्पन्न तओ पुण तमतमाइ, पंचत लहिय दुहुगंगमाइ ॥ ७१ ॥ मुद्धमोहिम, बहुवेयण पात्रिय तत्थ तेहि । न हु कस्सइ दिद्ध न खद्ध विद्ध, पण अज्जिय अप्पा दुहिय कि ||७२ || अन्नाणकटु काउण सुट्ठ से सागरजीव हुअओ गरिट्ट । तुमभवणिनाह इयरो य तुज्झ, उववन्न भाय लहु सयलवज्झ ।। ७३ ।। इत्तो य अवरजं तस्सव, विनायपुण्व सेा तुज्झ सव्व । उवसग्ग करिस्सइ तुह अणज्ज, चरणम्मि टियरस महाअवज्ज | ७४ ॥ यो कुरयाइ सह करिय मित्ति, तस थावर जीव वहे वि सत्ति 1 दुस्सहदुहरासि विसन्न बाल, भमिही भव भूरि अनंतकाल ॥ ७५ इय सुणिय वयण सुगुरुहि वृत्त, वेरग्गरंग नियमा पवत्त निय भायणिञ्ज हरिकुमरि रज्ज, संकामिय निल गिरहइ पवज्ज ७६ दुस्सहतव सोसियनियसरीर, मेरु व्व सुथिर अधीरवीर। सुमुणिय सिद्धंत रहस्सतत्त, उज्जुयविहार रिसिराय-पत्त ।। ७७ ।।
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