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________________ उपदेश समतिका ॥४२॥ उच्छृण खित्तकरसण करंति, तसजीवसहिय तिल पीडयंति। मुहगुलियधाईसाडमाइ, वाणिजि पवढईते पमाइ ॥५४॥ तह करहसगडपुट्ठियह सत्थ, घणमोहलोहमच्छरिहि घत्थ । देसंतरि पेसई वहुब सत्थ, न गणइ ते पावह भर अणत्थ ॥५॥ धणकज्जि रज्जअहिगार लिंति, करदुड्ढि अहिय दाणिहिं करंति । बंधति हेडहयतणीय गेहि, अहनिसि ते मुच्छिय अप्पदेहि ।।१६।। इच्चाइपावकोडीहि तेहिं, धणकोडि समज्जिय कइदिणेहिं । अह पत्थिय जलनिहिमज्झि तेहि, पूरिय पवहण बहुवक्ख रेहिं ।५७। लग्गेवि कन्नि जंपिय कुरंगि, तो कुरयाइ मनि धरिय रगि । नणु हणसुमितमिमनप्पणिज्ज, धणभागहरं जह सोक्शि कज्ज ५८ । जसु धण तसु सयण अणेग हुंति, अणहुंतवि घणबंधव मिलति । धणवंतह आवास त्रिछलंति, लीलाइ मणोरहसय फल ति ५९ नियहत्थिहि कुण नणु दविणजाय, तव्वयण हूय तणुमण सहाय । निचं पि कयि पावोवएस, कस चित्तिहि न वसइ भण अवस्स ॥६॥ तो पाडिय सायर सायरम्मि, तो तेण जलुम्मीपूरियम्मि । सो खद्धदेह जलयरस एहिं, संपत्त नरय असहोदएहि ।। ६१।। मयकिच तेण निम्मिय असेस, मणि हरसिय तब्बसणम्मि एस । जा जाइ किंपि जलमग्गि जाद, फुट्टई वाण तक्खणि सपाव ।।६।। मौरतरि वहुउ सयललोय, हुय खंड खंड खणमज्झि पोय । गय सयलवत्थवक्खर जलम्मि, जीविभसंसय सो पडिय तम्मि १६३ । अह तुरियदिवसि पट्टिय लहेवि, उत्तिन्न सो य कट्टिहिं करेवि । संपत्तउ कम्मिवि पट्टणम्मि, वाणिज्ज कर इ सो पुणवि तम्मि ६४ ॥४२।।
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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