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________________ ॥३७॥ ।। कौत्तिचन्द्रसमरविजयकथा ॥ इह भरहखित्ति अच्छइ पसिद्ध, चंपा इय नयरी धणसमिद्ध । जिहिं धम्मकज्जि जणु अहियलुद, परदब्दहरणि पंगुब्व सुद्ध ।।१। सूपयंडदंड जिणहरसिसु,न हु दीसइ पुण नायरनरेसु । जिहिं तिब्बलोह सुहडह करेसु, अइमलिणपंक गिम्हह स रेसु ।। २ ।। तत्थत्थि नराहिव कित्तिचंद, जसु जसिहि विणिज्जिय भमइ चंद । नहु पावइ कत्थ वि जाव ठाण, ता जडरुइ सेवइ सन्नठाण ।। ३ ।। जवराय सवरविनाभिहाण, लई तास सहोयर दोसठाण । परिपालइ दोन्नि वि निययरज्ज, मणवंछिय साहइ सयलकज्ज ।। ४ ।। जिणिभग्गग्गसूरप्पयाव, विणिवारियव्वरिउप्पभाव । झबकंतकंतिगिज्जुलिकराल करनाल करंत उ करि विसाल ।।५।। गज्जियरवि तज्जइ किरि दुरंत दुक्कालमहारिउबलमहंत । गयणग्गभवणि निम्मियनिवास, परंतउ तिहुयणलायास ॥ ६॥ कसिणभपडलउभड गयंद, अह पाउसकालमहानरिद । सालरमोरगणवदिबिंद, जयजयरवपत्तअमंदमंद ।। ७ ।। इत्वंतरि कोहलरसाल, आरूढ गवविहिं भूमिपाल | उन्नलिरबहुलकल्लोलमाल, पिक्खई नइपूर महाविसाल ।। ८ ।। उत्तरिय भूमिबल्लह दुरंत, तिहि आगय नियपरिवारजुत्त । आरुहिय नावि पविसई खणेण, नइघरमज्झि कोउगरसेण ।। ९ ।। जल केलि करइ जा परियणेण, सह भूवइ ता उरि घणेण । बुठेण पड्डिउ नइपवाह, अइतिळावेगि पवहाइ अगाह ।। १० ।। उम्मग्गि जंति अह बेडियाउ, जह उक्कड नरवइचेडियाउ । न हु कन्नधार वावार कोइ, विष्फुरइ लाइ हलबाल होइ ।।११।।
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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