________________
उपदेश
समति
11३८.
जलपूरिहि लिज्जइहा नरिंद, पुक्करइ तत्थ इथ लोविंद । धावह घावह भी सुहड इत्य, कड्इ नरवइ जगि सो समस्थ १२
जिहिं दीसइ दीहतमालसाल, निबंबजंबुतरुवर विशाल ।
अह दीहतमालाडवीयरुक्खि, तरणी विलग्ग कह कह वि रुक्खि ।। १३ ।। उत्तरिय भूमिवासव जवेण, संजुत्तउ कइवइपरियरेण । वीसमइ इक्कखण तिहि नरेस, नियनयहि पिच्छइवणपएस ॥१४॥ आसण्णअरण अगण्णवग्घ, हरिदलिए जूह उच्छल निमसरण्य मभिर तिहि भूमिनाह, आणइ उब्वेय महा अगाह ।।१५।। मणिरुप्पकणयटंकय अपार, तारय जिम झिगमग करइतार । कलंकससलिलुक्खणिय ताव, निहि पिक्खाइ रयणुज्जलसहाव ।१६।। तं पिक्खिय नियमंदिरिहिं पत्त, निवकित्तिचंदु परिवारजुत्त । अह चितइ सरलसहाब राय, चिज्जइ अवसरि नैव भाय ।।१७।। ॥ घात ।। दंसइ ते नरवर नियय सहोयर समरविजय आणे वि लहु ।
अइकुडिलसहाविण चितइ तक्खण सो पाविटु सुदुटु बहु ।। १८ ।। ॥ भास ।। रयणलाहेण निहणेमि नण भायर, जीववहअलियघणपावभरकायरं ।
रज्जमवि लेमि गयतुरयसयसज्जियं, गुरुअभुयदंडसारेण जं अज्जियं ॥ १९ ॥ कस्य माया पिया भाय भत्तिज्जया, कस्स मित्ता य भयणी य वरपुत्तया । जस्स धण तस्य घण सयणसंबंधिणो, पिम्ममाबहृइ सम्वा विनणु परियणो ।। २० ॥
मुक निस्संकचित्तण लहुभाइणा, घाय नियभायहणणत्थमुरुमाइणा ।
1134