SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश ।।३० । विहरति ते निसंगा नीउच्चकुलाई कालदोसेण । पाविति अंतपंताई स संकिलस्सइनियमणम्मि ॥ ९ ॥ नहु सुठु सङगेहाई दंसेई एस सदसहाविद्धो । खरदुट्टत्तणओ सो विन्नाओ संगमगुरूहि ||१०| तत्तिरखत्थं गुरु पविट्टो धणढगेहम्मि | रेवइदोसग्गहिओ तदंगओ रोयइ सया वि ।। ११३ संजाया छम्मासा ईसि न सहइ सिस समाहि सो मा स्यसित्ति भणिता चप्पुडिया वाइया गुरुणा ।।१२।। तव्वयणायन्त्रणओ तक्कालं रेवई सुरी नट्ठा। सो रहिओ रोयंतो तुट्टो जणओ य सुयरं ॥ १३॥ पडिलाभिया य गुरुणो मोयगमाईहि गुरुयभत्तीए । सरसाहारं दाउं विसजिओ सो विचितेइ ॥११४॥ दावियमे तु कुलं विरस्स एएण मे सयं भमइ । सिरिमंघरेस सव्वं संप तत्थ एयस्स || १५।। एयं त्रिसमाणो उवस्तयं सूरिसंतियं न गओ आयरिया सुइरं हिंडिऊण समुवागया वसहि || १६ || अंत पंतमसित्ता सुस्यात्रत्था कुणति सज्झायं । गोयरचरियपडिकवेलाए गुरूहि सो भणिओ ।।१७।। आलोइसु अञ्जतणं असणं तुम्भेहि चेव सममयं । अहिडिओ किमालोएमि गुरूहि समुल्लवियं ||१८|| गए धाईपिडो भुत्तो तो सो कहेइ दुम्सीसो । सहमाई पर छिद्दाई पिच्छसि नो अप्पणिजाई ||१९|| नित्थि लोस्स लोयणं जेण नियइ नियदोसे । परदोसपिच्छणे पुण लोयणलक्खाई जायंति ||२०| एवं वोमंसंतो गओ कुडीरंतियं कुसीसो सो । इत्यंतरे सुरीए गुरुपयपउमेक्कभमरीए ॥२१॥ तदसम्भावे मुणितं मट्टाए तरस सिक्खवणहेउं । संजाय अद्धरते देउब्वियमंधयारभरं ॥२२॥ सप्तनिक ॥३०॥
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy