________________
उपदेश
||३७६।।
मिज्झिहिं छइ ज्जु पहिल्लउ । धम्मसीलि तइंसणकारउ मिगा भणइ तो पहु अवधारउ २८॥ भयचं तं नह कोऽवि सप्ततिका. वियाणइ सामि कहं पुण तं वखरणइ । तो गोयमगणहरु त भासइ उज्जलदंतकंति उल्लासइ ।।२९।। तिहुयणगुरु सिरि वीरि पयासिय तस्सरूवि महमण उल्लासिय । जइ एवं ता सामि विलंबह खण इक इत्थ वि धरिय अणमाह ।।३०॥ सर पियमितरण आशिय गोयम गुरु संटिय बहुमनिय । भोयणसमय तस्स उजा पत्तउ तो तज्जणणि बेस निबत्तओ ॥३१।। सगडीय आहारिहि तो पूरिय भोयण विहि सन्बुवि किरि चूरिय । संकलबंधवि सा आगरिसिय गिहबार जा आविय हरसिय ।। ३२॥ नियमुहबंधवि सत्तबडंन लि तो मियदेवि भणइ करि अंजलि । तुम्ह बि मुहात्तीय मुह ढकह आगच्छंतनितिमासंकहु ।।३३।। तो भीमहर बारुग्राउइ तक्षणि दुरहिगंध मुह साउद । सम्पमडय गोमडय सरिच्छउ जो पसरंत होइ नहु पिच्छउ ।।३४।। अन्नगंध उद्धरस लहेविण सलवलेइ अवसर जाणे विण । दीसइ अंगआहारिहिं पीण उ नयण वयणनासा परिहीणउ ।।३५।। पक्खित्तपत्तमज्झम्मि सोय तदुवरिहि भुज्ज पविखविय तोय । सो लुलइ चलइ आहारसा लुद्ध उ रसगिद्धओ अकयपुत्र ।।३६।। धत्तसो तत्थ लुलंत उ कम्मिरलंत उ लोमाहार करेइ लहु । पुणरवि नीहारिय रोगिहि भारिय पूइत्तणि देहाउ बहु ।।३७।। भास-एरिस पेक्खेत्रिण तस्सरूव गोयम गणनायग विस्सरूव । वेरग्ग अभंगुर धरइ चित्ति चितइय अचितिय कम्मसत्ति ।।३९।। मियदेवि अणुन्ना लाहिबि हेव । सिरिगोयम चलीयउ अह तहेव । संपत्तउ पहुपयजुय नमेइ करकमल जोडि इय विन्नवेइ ।।३९।। तुम्हाण आण पहु सिरि परित्तु हउँ विजयरायभवणम्मि पत्त । जह कहिय तुम्हि तह चेव ट्ठि मइं लोट्टरूब नंदण अणिट्ठ ।।४०।।