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________________ उपदेश-6 एवं परोप्परं लग्गा पाविकपरिवाडी महाराडी। तीए सद्धिं रोहिणीए जिणगिहमागम्म विमुकचिदवंदणज्झबमाया मामा धत्तं बहुए कहा न्हुसाचरियं सम्सूए पुरो पयासइ निलज्जा मज्जाया रोहिणी कहं तुम्हाणं घर बीवाहमहमबो कंग्मिी जेमणवारा पउणीकयखाइमसाइमत्तेमणप्पभिइ रसबइ पदभारा सपना । एवं पांदणमे मा विकहाबिवसा चेव चिट्ठा । अन्नया तीए जहातहापलवंतीए पारद्धा विविहा रायगृहा । कीएपनि पुरो तीए असहनीए ममुट्ठियाए अन्नाए मट्टि पारद्धा ॥३१२।। इत्थीपुरिसवत्ता । सावि सस्सूभएण जाव नववल्लवहूआ तुरियं पत्ता निवगेहं । तओ अवराए थेरीए सह करेइ देसकह । सा पराववायतरुप्परोहिणी रोहिणी अईव वत्तालुयाए मञ्झन्हेवि नागच्छई मगिहै। एवं पडदिणमेसा कुब्वाणा अन्नदिणे केणावि साबएण जोडियकरेण मुस्सावणुत्ता-"अहो सुसादिए खण मत्तमित्थ जिनहरे ममेच एकागवित्तयाए जइ | चिइबंदणं किजइ, तो जुजइ तुम्हे वताओ चैव कुणह" । तओ कवडिणी तमुनरिऊ लामा-"सहोअर अम्हे किं कुणेमो? 81 अन्नत्थ वत्थवि कोऽवि कस्सवि न मिलइ परघरे निकनं कोऽपि न जाड, तनो पियमेलयद्वाणमिणं सब्बोवि पइदिणमेइ सिच्छाए, तेण खणमेगं सुहदुक्खं पुच्छित्ता कजइ निब्बई, तुमाए इत्थन्थे नासमाहाणं कञ्जमल जताए"। तओ साहुणीउस्सयं संपप्प सावियाहिं सद्धिमारभइ विगहाओ, गिन्हा माहुमाहुणोण दोमुकरिसे असरिसे । तओ जइ साहुणीओ 11३१२।। किंचि सिक्ववंति-"महाभागि पढियं सव्वमवि परिगलियं किमणेणेहिआमुस्सियावायसयनिबंधणेण केवलकम्मबंधहे उणा विगहापरापवायकरणेण? सज्झायमेव सग्गापवग्गमुहसाहणं साहेहि" । तओ पबियइ मुहं मोडइत्ता-'इच्छाकारण भगवइ अजिए साहुसाहुणीण वि परावणवाओ दुप्परिचाओ। परापवागणव सव्वो जणबवहारो। वद्धमुहं न कवि
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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