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इसीपरि सो गमेइ । रयहरण अनइ मुहपत्तीय लेइ, मुणि वेस सीसलंचिय करेइ ।।६२॥ इक्कारस मासा इय करेइ, पडिमा इकारस अणुसरेइ । निसि सि धम्मजागरि करेइ, नियचित्तिहि इणिपरिचित्तवेइ ॥६३॥ पण इंदिय तिवलसासआय, दस पाण सहिय जा सजकाय । गिरिवीरनाह जां विजयवंत, अणसण हउँ गिण्हिसु ता पसांत ॥६४।। अह सत्ताखित्ति धण वावरेइ, गुरुमुहि सणवय उच्च रेइ । चत्तारि सरण चित्तिहि करेइ, मंगल चत्तारि समुच्च रेड ।।६५।। पाणाइवाय जं किय निसांक, भासा असञ्चभासिय जु वंक ! अणदिद्ध लिद्ध जंधण अपार, मेहुण जं सेविय मई उदार ॥६६॥ जं किद्ध परिग्गह मई असार, जं कोह माण माया विकार । जं लोभ पिम्म कलहो य दोरा, पेसुन्न अरइ रइ बहुकिलेस ।।६७।१ परवाय परह जं अन्भखाण, इय किद्ध अढारस पावठाण। विगहा जं बिहिय च उप्पयार, बावीस अभक्खह किय आहार ।।६८।। जं अट्ठ रुद्द किय दुन्निशाण, आसेविय पनरस कम्मदाण । हिसिय चउरासी लक्ख जीव, ते मिच्छादुकड जावजीव ॥६९|| जिणराय पूय किय तित्यजत्त, जं पोसह सामाइय पवित्त । जे भत्ति हि दिनउ मुणि हि दाण, जं सीलिय सील दयानिहाण ||७०॥ जं बारभय तव किय पसिद्ध, जं भावण भाविय अइविसुद्ध । जं पालिय वयसम्मत्तसार, जं गुरुजण सेविय बहूपयार ॥७१॥ घात-इचाइ जु किडओ तिजय पसिद्धओ धम्मविसुद्धओ जिणकहिय । ते सवि अणुमोयइ चित्त पमोयइ कसमल धोयइ पुबकिय ।।७२। संलेहण किद्धी मास दुन्नि, तिणि अप्पा पूरिय पबलपुन्नि । अणपण परिपालिय एगमास, धणसयण पुत्त परियण निरास 11७३।। पर मिट्टिमंतसहझाणलीण, पञ्जतकालि नहु होण दीण । सो बोस बरिस ठिय सावगत्त, सोहम्म नाम सुरभवणि पत्त ।।७४।। सोहम्मवडंसयवरविमाण, ईसावकूणि जसु अच्छइ
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