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________________ ॥२८॥ इसीपरि सो गमेइ । रयहरण अनइ मुहपत्तीय लेइ, मुणि वेस सीसलंचिय करेइ ।।६२॥ इक्कारस मासा इय करेइ, पडिमा इकारस अणुसरेइ । निसि सि धम्मजागरि करेइ, नियचित्तिहि इणिपरिचित्तवेइ ॥६३॥ पण इंदिय तिवलसासआय, दस पाण सहिय जा सजकाय । गिरिवीरनाह जां विजयवंत, अणसण हउँ गिण्हिसु ता पसांत ॥६४।। अह सत्ताखित्ति धण वावरेइ, गुरुमुहि सणवय उच्च रेइ । चत्तारि सरण चित्तिहि करेइ, मंगल चत्तारि समुच्च रेड ।।६५।। पाणाइवाय जं किय निसांक, भासा असञ्चभासिय जु वंक ! अणदिद्ध लिद्ध जंधण अपार, मेहुण जं सेविय मई उदार ॥६६॥ जं किद्ध परिग्गह मई असार, जं कोह माण माया विकार । जं लोभ पिम्म कलहो य दोरा, पेसुन्न अरइ रइ बहुकिलेस ।।६७।१ परवाय परह जं अन्भखाण, इय किद्ध अढारस पावठाण। विगहा जं बिहिय च उप्पयार, बावीस अभक्खह किय आहार ।।६८।। जं अट्ठ रुद्द किय दुन्निशाण, आसेविय पनरस कम्मदाण । हिसिय चउरासी लक्ख जीव, ते मिच्छादुकड जावजीव ॥६९|| जिणराय पूय किय तित्यजत्त, जं पोसह सामाइय पवित्त । जे भत्ति हि दिनउ मुणि हि दाण, जं सीलिय सील दयानिहाण ||७०॥ जं बारभय तव किय पसिद्ध, जं भावण भाविय अइविसुद्ध । जं पालिय वयसम्मत्तसार, जं गुरुजण सेविय बहूपयार ॥७१॥ घात-इचाइ जु किडओ तिजय पसिद्धओ धम्मविसुद्धओ जिणकहिय । ते सवि अणुमोयइ चित्त पमोयइ कसमल धोयइ पुबकिय ।।७२। संलेहण किद्धी मास दुन्नि, तिणि अप्पा पूरिय पबलपुन्नि । अणपण परिपालिय एगमास, धणसयण पुत्त परियण निरास 11७३।। पर मिट्टिमंतसहझाणलीण, पञ्जतकालि नहु होण दीण । सो बोस बरिस ठिय सावगत्त, सोहम्म नाम सुरभवणि पत्त ।।७४।। सोहम्मवडंसयवरविमाण, ईसावकूणि जसु अच्छइ 201२८९॥
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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