________________
एवं ते संबोहिय नियबुद्धिबलेण सो नणु सबुद्धी। निवपुरओ विनिवेसिय निहिस्सरुवं कहइ सव्वं ॥४९।। तब्बयणायन- सप्ततिका उपदेश
णओ चमकिओ माणसम्मि महिवालो । पिच्छई केरिसमसमं बुद्धिबलं इय भणइ पयर्ड ॥५०॥ सुहमत्यवियारणओ सनं तुह नाम खलु सुबुद्धित्ति । जो अनेसिमसज्झो सो नाओ जं को तुमए ॥५१।। इय सुपसंसिय सचिवंगयं गयं खाइमवणिमज्झम्मि भूवासवो विसजई सजइ नियरजकजाई॥५२॥ तेविहु पत्ता सघर निरंतरं पीइभायणं जाया ।
जायामरिसावि हु नणु सवुद्धिणा उवसमं नीया ॥५३।। मंतिसुओ दुब्बुद्धी बीओ दुब्बुद्धि उत्ति अववायं । पत्तो जणे ॥२६८15 सपिउणो जणणीएवि हु असोक्सास ।।५४॥ लोए उवहाँसञ्जइ अवमाणिज्जद्द सहाइ मज्झम्मि । जह तह पयं
पमाणो भाउगुणे असहमाणो य ।।५५।। अह अन्नदिणे तत्पुरपरिसरवणमज्झमागय सुगयं । अइसयनाणिणमणगारमुत्तम किंचि निसुणित्ता ॥५६॥ भूवइमंतिसुबुद्धिप्पमुहा तप्पायपउमनमणत्यं । पत्ता वंदिय तत्थोवविट्ठया सुणिय देसणयं ॥५७ इइ अक्खइ मइसारो सुबुद्धिदुब्बुद्धिनामया पुत्ता। कह मह जहत्थनामा संपत्ता कम्मदोसेण ॥५८।। आह गुरू भी निसुणसु इत्येव पुरे दुवेवि वणि (य) पुत्ता । पुदभवे आसि इमो विमलो अयलो य इयनामा ।।५९॥ भिन्नसहावा दुनिवि & विमलो विमलो य चित्तमज्झम्मि । तारुण्णेवि मगुण्णे सो वेरग्गं समावन्नो ।।६०॥ धणधनाइयमुज्झिर
!॥२६८ समनीणो । गुरुपासम्मि अदीणो परीसहेसुंपि विसमेसु ।।६१।। अपदिसु सुत्तमत्थं निसुणइ सुत्तचिंतणं कुणइ । एगते तह अन्ने मुणीणो पाढेइ सत्थाई ।।६२।। सुत्ते गुरुम्मि भत्ति सत्तीए कुणइ थुणइ गुणवंते । आयरियपयं पत्तो कमेण छत्तीसगु