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________________ ॥२४९॥ गयवरो सहरिसं समागम्म ॥४५॥ अणवंधिकोहनामेणऽहवा वेसानराप (व) रक्खेण । जिट्ठसुएणं तस्स य ताय अहं R जलणसिहपासे ॥४६॥ पुवमभूवमहं खलु विचालए परमहो समागच् । सम्मइंसणसत्तू पविट्ठओ तो वयं नट्ठा ॥४७॥ संपइयमस्थि (तत्थ स नत्थि) तुम्हे नणु बीसमेह निबंता । आइसह मज्झ अजं नियभुयविरियं खु दंसेमि ।।८।। तायप्पसायओ तं पच्छा वालेमि इकहेलाए । तो पिउणाणुनाओ जलणसिहस्संतियं पत्तो ॥४९।। तस्संनिहाणवसओ जहत्यनामो इमो हु संपत्तो। थेवेवि हु अवराहे रूसइ नहु तसइ कहिपि ।।५।। भजं ताडइ फोडइ भडे चंडेण कोहकलहेण। बट्टइ घट्टइ पाएहिँ मायरं दुविणीयतया ॥५१॥ पियरपि हु अवमन्त्रइ न गणई नियबंधुणो लणसमेवि । देवगुरूणवि विमुहो स संमुहं भणइ दुब्धयणं ॥५२॥ ततो सो परिचत्तो सन्देणवि परियणेण रोगिश्च । विजे| हिऽसज्झरोगो सोगोवगओ हुओ बाढं ।।५३।। अह अन्नया अ निबहमाणो नाणोवओगपरिमुक्को। चंडालकुले लग्गो खित्ताणं खिडणकजेसु । ५४।। पत्ते वासारते लंगलयं खेडए नवे खित्ते । न चलइ इकबाइलो गलियारत्तेण तरुणोवि ॥५५॥ वेसानरेण एसो अहिटिओ गाढमेव खित्तम्मि । तो ताडइ निस्संक आराहि दूहबइ वसहं ।।५६।। तहवि अचलंतमेयं मम्मम्मि य आणइ हयासो सो। कडियजीहो दीणो पडिओ गोणो महीवीढे ॥५७।। ता वेसानरविवसो अश्वत्थं बाडवो सुपिस्संता । दंताई पुत्थमेयस्स मोडए तोडए केसे ।।१८।। तहवि न उटुइ जा भुयलयाउ ता खिडिया खित्तडलएहिं । तह पिट्टिओ जहेसो पाणेण खणेण परिचत्तो ॥५९॥ तहदि न रोसग्गिभरो उपसमिओ तस्स समहिओ चेव । वडिउमाढतो लहु मम्मि जह वणदवोऽरने ॥६०।। सम्म ईसणचत्तस्स तस्स पाणा पलाइया झत्ति । मिच्छाई P ॥२४९।।
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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