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________________ उपदेश सप्ततिकाः 10 सणपमुहे गलगहिओ सो गओ नरयं ॥६१॥ तो भमिय भूरिकाल भवाडवीए मयव निस्सरणो । कम्मपरिणइवसेणं तओ धणंजयमहीवइणो ॥६२।। रुप्पिणिभजाए सावियाए जिणधम्ममम्मसजाए । जाओ कुबेरनामो पुत्तो पत्तो य तारुण्णं ।।६३॥ कुसलत्तणेण स कलासु वल्लहो हवइ माइपियराण । इत्तो विसमा पल्ली बलीवणभीसणा अत्थि ॥६४॥ वग्धोव्व विहियदिग्धो वग्घक्खो ॥२५०।। पन्निवासवो तत्थ । जो अवि धणंजयपुवाएहिं न हु साहिओ कइया ।। ६५।। सो लुटइ रायधणंजयस्स गामागराणि नगराणि । बंधइ रुंधइ सत्थं सत्थेहि हणेइ जणनियर ॥६६।। तम्मि खणे तेण पुणो तसोवद्दवो कओ वाढं । तदुवरि तओ ससिन्नो कुमरो पट्टाविओ पिरणा ॥६॥ नभय गएण पणेणं तदागो दिबजोगओ गहिओ । साहियपटीदेसो जियकासी आगओ सपुरं ॥६८॥ ते तकित्ती गिजइ गीएसु जहि भट्टघट्टेहि । सत्यंदछप्पयाई तस्स पढिअंति रासा य ॥६९।। तत्तो अवगयसमओ समओ समुवागओ गउन्ध तहि । वेमानरस्स भाया अणतअणुबंधिओमाणो ॥७०।। दोसगइंदंगरुहो विक्खाओ सेलरायनामेणं । तस्सनिहाणओ सो उत्ताणमणो समुभूओ ॥७१।। उड्डीकयनयणिलो अंगम्मि न माइ माणदोसेण । थंभोवाणम्मतणू नयरम्मि रमेइ लीलाए ।।७२।। भणइ य मुहरत्ताए कि विहियं अम्ह पुज्वपुरिसहिं । जेहि नपुंसपेहि व गलियभुयबलभरेहि अहो ।।७३॥ पद्धरओ उद्धरिओ नहु चरडो कंटउव्व पायस्स । रंकुब्वभरियमुयरं सजीवपरिरक्खणपरेहि ।।७४।। एसो धणजओ पुण विणओ हणिओअरीहि नणु हुँते।। जइ न हु जाओ हुंता सुओ जए विस्सुओ अहयं ॥७५।। तच्छंदवत्तिणो तह तहेवमेयंति सामिय वयंति । न हु तुह्माण
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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