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________________ ॥२४७।। भिक्खायराणंपि ।।१३॥ न सहइ तकरफासं पसत्यवत्थूण गेहमज्झम्मि । भोयाबइ न हु अन्नं मन्नती वेरिणि बहुअं ।।१४॥ सो कोवि नस्थि विणओ जो साहिजइ न तीइ सस्सूए। तहवि न तुस्सइ पस्सइ छिदं मूसी बिलाडुब्ब ।।१५॥ पाए पक्खालइ सा अहन्नया तहाव पन्हियाइ ह्या । निभच्छिया य बादं रे उट्ठमु जाहि दूरेण ।।१६।। जइ संवाहइ अंगं तीए हत्थाई तोऽवसारेइ। गेहदुवारं न मुयइ मा भक्खइ खंडगुडदुद्धं ॥ १७॥ न हु वंदइ गुरुदेवे चितइ मणसात्रि नेव धम्म विहिं । पुब्बं संभग्गपिहाणियाइ भंडाइ संभरिइ ।।१८।। रे वह भग्गा एसा उसा मुसा दोसमुल्लवइ एमा। अकोसंती तीए वहुं महारोसदोसवसा ॥१९॥ चिटुइ सा जिणसिरिया निहिरीया मुक्कजायमजाया। रोसेण धमधमंती मणे वहुअदोसझाणिल्ला ।।२०।। न हु पडिभासइ किंचिवि धणसिरिया बहुखमा खमुब्ब बहू । सवेण्ण परियणेणं सुणिओ तब्बइयरो सम्यो ।।२१। विमलेणवि विनायं तविलसियमसेस मवि चित्ते । जइ तेण उबालद्धा तो लग्गा संमहं चविउं ॥२२॥ उवहइ कोहमसम विसमं जं किंचि जंपए मुहरा। सव्वेदि तो बत्ता असज्झबन्नुब्ब जिणसिरिया ॥२३॥ सम्मइंसणभठ्ठा मिच्छादसणमयम्मि कयनिट्ठा । मोहबलेणुक्किट्ठा सा जाया घिठ पाविट्ठा ।।२४।। जलणुब्ब पजहांती संपन्ना तिब्वरोसदोसेण । इत्तो कोवि महिड्डी सगीणओ विमलसिटिस्स ।।२४।। तग्गेहम्मि समेओ अहन्नया तेण भोयणे पिचा। दिवा गिट्टिएणं अजंपिरि नियन्हसं बहुहा ।।२६।। अकोसंती जिणसिरिनामा वामाभिभासणुम्मत्ता । तो तेणं बजरियं मुहा कह खिजसि इमीए ॥२७।। कस्सेयं नणु गेहं देहपि असासयं तहा लच्छी। कइबइदिणावसाणे न PO तुम न हु लच्छिविच्छड्डी ।।२८।। सुद्धसहावा एसा बहुआ पञ्चक्खमेव नण दिट्ठा । संतावेसि पइदिणं किमिमं बहुकोहक ॥२८७१
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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