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॥२२६।।
अट्टारसहससीलंग धार ।।१९।। दवदंत रायरिसि गयपुरमि, समवागय पंदवपुग्नणम्मि ! किरि मुत्तिमंत जगि धम्म पह, बेरम्गरंग अइचंग देह ।।२०।। सो पुरदुवारि टिय काउस रिंग, अक्खोहिय सुरनरखयरबग्गि । मेरुब्व निप्पकपंग वंग, अकोहमाण परिचतसंग ॥२१॥ (घात) रयवाडीकजिहि, परियणसजिहि दिवउ पंचहि पंडविहि । सो मुणिवरतखण देइ पइक्खण वंदिय भत्तिपरवसिहि ॥२२॥ कयपुन्न धन्न मुनिवर महंत, दवदंत रायरिसि विजयवंत । एयस्मर नमसणसण, दूरेण दुरिय नासइ खणेण ।।२३। निस्संगसिरोमणि समणसीह, मणिमज्झि इमस्स उपहमलोह । तिण जेम जेण परिचत्त रजधणपरियणसंदररूवभन्ज ।।२४11 पंचहि पडवि किय परमभत्ति, इय कन्नि सुणतुवि अग्पकित्ति। न हु आणइ चित्तहमज्झि माण, इक झायइ नियमणि सक्झाण ।।२५।। चलिएस तेसु इय मुणि थुणित्तु दुजोहण इत्थंतरइ पत्तु । पडिमट्ठिय दिउ तेण साहु, तदुवरि अइस्टुउ सो असाहु ।।२६॥ एएण अम्ह अइअजस दिद्ध, गढरोह
करिय जयसिरीय लिद्ध । इय पुत्रवेर संभरिय चित्ति, सो बीजपूरि ताडेइ झत्ति ॥७॥ तं दठ तस्स परियण असेस, व उप्पन्नतिब्वअमरिस विसेस । पाहाणखडि आहणइ साहु, सुहभावि सहइ सो तिरवराहु ॥२८॥ रइवाडियचलिय जुहि-0२३।। ट्रिलेण, मुणिरायमपिच्छिय पत्थित्रेण । बहुपत्थर पिचिखय परियणो य, अह पुच्छिय तेण य अप्पणो य ॥२९॥ सो कत्थ साहु जो इत्थ हुँत, जियरागदोस मुणिगणमहंत । तेणबि दुजोहण तणिय वत्त, बजरिय सुणिय सेा दुक्ख पत्त ।।३०।। दूरिहि अवसारिय उवल तेण, आसासिय मुणि सह परियण । तसु देह सज्ज काऊण राय, खामीय संपत्तउ गेहः भाय ॥३१॥ दवदंतरायरिसि सद्धचित्त, इय भावण भावइ सुप्प वित्त । खणभंगुर देह असार एह, मलमुत्तपुरीसहत