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उपदेश
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दवदंत रायगिरिहि पत्त, बहुमन्निय तेणवि विन्नजुत्त ॥६॥ इत्यंतरि हरियणपुरखराउ, निच्छियविण नाहिण सप्ततिका राउ | तसु देल्लरिय पंडवेहि, पंचहि मंडियबल वेहि ।। ७ ।। तं बहुअरमाइन्त्रिय जवेण दवदंत भूमित्रइणा चरेण । हत्यिणपुर वेढिय नियबलेण, जह नहयल सयलुवि वलेण ॥८॥ जाणावाड पंडयें चरमुहेण निवसंत देन अम्हह सुहेण । उब्बासिय तासिओ न हु बण, तुम्हेहि किंतु निच्छद छलेश मन हूं एस वीरलोप्राण मम्ग, जं जिइ छल काउरिसजुंग्ग । तुम्हे उत्तमेवसुन्भवाय, तत्यवि दुण पंच य पंडवाय ||१०|| जइ अच्छर परकम कोवि तुम्ह, निग्गच्छिय दुग्गवराउ अम् । संमुह आवेविण जुज्झ लेहु, पडिणीयचकसिरि पाय देहु ||११|| अजविन किचि क्यमत्थि तुम्ह, भूयकंडू विजउ रणिहि अम्ह । इय दुअवयणि ते तजिया य, दुग्गंतरि संठिय लञ्जियाय ||१२|| जह मूसग मज्जारियभएण, चिट्ठति बिलंतरि विग्गहेण । तह अप्पा रक्खिय पंडवेहि, हरियणपुरदुरिंग निलुकएहिं ।। १६ ।। तिहि दुग्गरोह बहुदिण करे वि. बाहिरडियनर बंदिहि घरेदि । दवतराउ नियठाणि पत्न, नवमग्गिरज पाल पवित् ।।१४।। अह कइवइ दिवसंतिरिहि तत्थ, सिरिनेमिनाहगणहर पसत्य । सिरिघम्मधोमूरिदचंद, जिव हरितिय धम्मि कुमुर्याविद ।।१५।। तत्थागयमुनिगणमहुअरेहि, अरविंद जैम सेविय सुरेहिं । तव्वंदणकजि समेइ राओ, पणमड़ बहुभतिहि सूरिपाओ ||१६|| तद्देसणरंजियमाणसेण, सेवियवेरग्गरसायणेण । वणन्नरज मुज्झियमसेस, विसयादसुक्ख चईकम एस ||१७|| पडिवज्जर संजममायरेण, परियणरायणाइ न गणिय तेण । अह सुत्तअत्यसिक्खं लहेवि, गुरुआण मउड सीसिहि गवि || १८ || गीयत्यगुणिहि अग्गंजणीय, सुरमाणवदाणवपुजणीय । एकल्लउ स मुणि करइ बिहार,
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