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________________ ०९॥ वइ। उसमविवेयसंवरपयतियमिमममयबिंदुसमं ।।४।। न हु किलेसबहुले टाणे ठाउं महोचियमव । इयर विनाय महप्पा विहाव स बोममुड्डोणो ॥४८|| तत्तो चिलाइनो तत्तोऽवि हुँ पादपुंजगिम्हेण ! सिनोव्व पयनियुजलसीयलसलिलेण संजाओ ।।४९।। चितइ चित्ते सत्ते कारणमगष्णमुदवहतो मा। पयतिब मेयमणघं मणिब नण मुणिवईदिन्नं ।।५०। कोहवसट्टो अहयं कत्तो मह उसमस्स लेसोऽवि । ततो जावजावं मए कमाया परिचना ॥५१।। धणसयणाइविवेगा काययो तह मए पमत्तेण । इस नाउं सीसं तह खग्गं हत्याउ मिहेष्ट ५। मणइंदियाण निश्चं कायञ्चो मंत्रो माइतस्म। एवं वोमंसंता निचलकाओ ठिओ एमो 11५३॥ धन्नो सो नणु समगों तित्रि पया मज्झ जेण उवइट्टा । अहमवि तकहियपहे ठाउं साहेमि नियकजं ॥५४।। इय चिन (नि) रस्स नम्म य रुहिरखरंटियतणुस्स गंधेण । कोडीउ निग्गयाओ खाइउमारमेयाहिं ।।५५।। पाततलं भिंदित्ता विणिग्गया नाउ सोसदेसंमि। तह जजरियं देहं जह जायं चालिणीतुल्लं ॥५६॥ देहम्मि दोहराई जापाई सयसहस्सछिद्दाई। दुकयरासीण इमाणि किमिह निजाणमग्गाणि ॥५७॥ अइनिविडं तणुपीडं अहियासतो चिलाइपुत्तो मो। मुहमाणाओ न चलइ मेरुब्व अईव निकंपो ॥५८॥ उकिट्ठदुटुकट्ठालिद्धारीरेण तेण सिट्टेण। अड्डाइयदिवसांते आउयपजतमणयत्न ॥५९।। संपत्तो सुरलाए सहसारे सारमुक्खसंभारे । बहृदुक्खसमुतारे चिलाइयुत्तो गुणपबित्ता ॥६॥ तारिसपाविकनिही अहीव अइतिब्बदोसरोसिल्लो । जं सोऽबि गओ सगं तं धम्मक्खरबियारफलं ॥६॥ एयं वियाणिन वियारणाए, धम्मक्खराणं फलमुत्तमुत्तमं । सम्मं वियारेह मुतत्तमम्ग, सगं च सिद्धी जह होइ निच्चयं ॥६२।।
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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