SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिका 1१८२111 उपदेश-रा कत्थेस जाइ लोओ सपमोओ सब्बओ पहे मिलिओ । सव्वत्थवि अक्खलिओ ललिओदारो रुने वत्यो ।।१३।। सो साहइ नेमिजिणागमणं तन्नमणहे उमेसोऽवि । आरुहिय रहं तुरियं सपरियणो पन्थिओ कुमरो ।।१४।। भनीइ पहं वंदिय आणंदियमाणसो सुणइ पहुणो । वाणि बहुगुणखाणि महुरसुहासारणिसमाणि ॥१५॥ संसारासारत्तं परिभाविय भुवणभाणुनेमिगिरा । तत्तं चरित्तधम्म परिचितिय अत्तणो चित्ते ॥१६॥ संवेगरंगरसिओ पहुमेसो बिन्नवेइ विणएण | भयवमहं भवभीओ वयं गहिस्सं सुयरहस्सं १।१७।। मायरमापुच्छित्ता तओ पहू भणइ वच्छ सुठ्ठ इमं । एयम्मि धम्मक जे तुमए सजेण होयच्वं ॥१८॥ अपमाओ कायन्बो न हु दायन्वो कयाषि अवयासो । विसयाण महाविससोयराण चिरसेवियाण अहो ॥१९।। अंबमविलंबमे सो आगंतूर्ण भणइ विणयपुवं । दिक्खं सिवसुक्खकए सामिसगासे गहिस्सामि ॥२०॥ नयणंसुवारिवारापसरेणोरत्थलं सुर्सिचंती। ससिणेहमणा जणणी तो बुलइ सबल वच्छल्ला ।।२१।। वच्छ बलस्सदि दिक्खा दुक्खावहघोरकट्टणट्ठाणा । सुहलालसस्स तुह तह अईव खलु दुकरा होही ॥२२॥ कह मं मुयसि सुनिठुरचित्तो होउं यासयापन्नं । घरमिव एगत्थंभं न मणं मह ठाइ तुह विरहे ॥२३॥ रमणीया रमणीओ बत्तीसेमाउ सुदढपिम्माओ । अहह कह चंदरहिया रयणीओ इव भविस्संति ॥२४।। पुव्वं जं किंचि कयं सुकयं तेणुत्तमा इमे पत्ता । भोगा दुल्लहजोगा अभंगुरुदामसोहम्गा ।।२५।। तहि रज्जं करह निवो कन्हो गोरो गुणेहि परमेसो । खाइयसंमत्सधरो जो बारसमो जिणो भावी ।।६।। प्रक्षिप्तोऽयम्. ॥१८२॥
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy