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सप्ततिका
उपदेश संघाडिएगदेसो दड़ो पभणइ किमेयमायरियं । मह संघाडी दडा तत्तो ढंको समुल्लवइ ॥२२॥
भयवई तुन्भे चेव हु भगह जहा डज्झमाण न हु दङ । को दहई पावरणं तुब्भाणं नणु निहीणयरो ॥२३॥
Lol उज्जुसुयनयमएणं सिरिवीरमयाणुगामिसमणाणं । जुत्तमिम खलु वृत्तं न हु पुण तुम्हाण निस्संक ।।२४।। ।१४६॥
इय तब्दयणायन्त्रणसमणंतरमेव सा तओ बुद्धा । पडिवज्जइ वीरमगं तहत्ति जत्थेरिस वियारो ।।५।। अज्जो सम्म पडिचोयणत्ति वुत्तूण तह य गंतूण । पभणेइ सा जमालि सो न ह मन्नेइ तव्वयणं ।।२६।। ताहे सहस्सजइणीपरिकिन्ना सामिपासमल्लीणा । न हु उस्सुत्तपराणं सह संवासेा गुणावासो ।।२७।। ततो लह चेव गओ चंपपुरि निन्हगो जमालित्ति । ठिचा समीवदेस पहुं भणइ निठगिराए ॥२८॥ तुम्हाणं निग्गंथा बहवे जह सति किर छउमत्था । न हु तारिसो अहं खलु छउमत्थियभावमावन्नो ।।२९।। उत्पन्न केवलन्नाणदंसणावगयविस्सब्भावो। अरहा जिणकेवलिओ इइ मुहरमुहे जमालिम्मि ॥३०॥ अह गोयमेण भणियं करथवि नो केवलिस्स खलु नाणं । वणसंडे व गिरिम्मिवि उवघायं लहइ लवमित्तं ॥३१॥ जइ पुण केवलिओ तं सयमुल्लविएण तो इमं मज्झ । वागरणदुग पभणमु लाए णिचे अणिचे वा ॥३२॥ सासय असासओ वा जीवो सिरिगोयमेण इय बुत्ते । संकियकंखियायिओ न किंचि पडिभणइ मोणपरी ||३३।। ता खज्जाओ उज्जोयभासुरो जाब जामिणितमोहो । वासरमणिम्मि उदिए सुनिप्पहो से लहुं हुज्जा ||३४॥ तो सिरिवीरो भासइ पायं सव्वेसु सरिससम्भावो । बहवे मह नणु सीसा छउमत्थावि है मुणंति इमं ॥३५।।
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