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न तरइ सो उवबिसिउ सकटृतण ओ मुणीण इय भणइ । मह् संथारं पउणह तेहिं तओ काउमारो ||८|| पुणरवि कहइ कओ भा किज्जइ वा ते भांति सामि कओ । तो उट्टिओ स पिच्छइ तहेव किज्जतसंथारं ||९|| तो तचिंता जाया जन्नं भयवं भणेइ सिरिवीरो । चलमाणे नणु चलिए निज्जिन्ने निज्जरते य ||१०|| तनं मिच्छा सा दीसइ पञ्चक्खमेव एयं तु । जं कज्जिमाणसंधारओ य न कओ इमं पडं ॥। ११ ॥ चलमाणेऽवि अचलिए अणजिन्ने निज्जरिज्जमाणेऽवि । एवं स मणे वीमंसिऊण समणे इमं भणइ ॥ १२ ॥ भो भो नियंडा में यह धर्म वीरो । चलमाणे न चलिए निज्जिन्ने निज्जिरिजमाणे ।। १३ ।। पक्वमेव दीस तं मिच्छा कोऽवि नेत्थ संदेहो । एवमिणं तव्वयणं केहिंपि हु निच्छियं मुणियं ॥ १४ ॥ केहि पि न सद्दहियं दहियं जह कडुअन्नसंमिस्सं । जेहि तहत्ति तदुत्ती पडिवना मंदपुन्नेहि ॥ १५ ॥ तेहि सो चेव गुरू कओ प्रमाणं तओ पुणो अन्ने । बहुविहजुत्तीहि विबोहयंति जाहे न सो ठाइ ||१६|| असमंजसं बुर्णतो तो तं मुत्तूण सामिमल्लीणा । अह सा समिपसूया नियपइनेहाणुरागिल्ला ||१७| ढकस्स कुंभकारस्स सङ्कगस्स घरे ठिया । अज्जाणं पण्णबेमाणी ढंक पि पडिबोहई ||१८|| आयरिओ अम्ह फुडं भासइ न तहा पहू भणइ सम्मं । तो ढंकेणुत्तमिणं न विसेसमिणं मुणामि अहं ||१९|| अह अन्ना कयावि हु तीए सुत्तस्स पोरसिपराए । उज्जीवंतो नियभायणाणि ढंको सुसड्डयरो ||२०|| वीरहुपहनिसेहणपराए पइमग्गलग्गचित्ताए । इंगालं पक्खिवई संमुहमेईइ बोहकए ||२१||
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