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अह तेसि तेऽवि भणि लग्गा सम्गापवग्गदायारो। भणिओ खलु चरणभरो नरो हवइ जेण बहुसुहिओ ॥४०॥ अन्ने कहंति केई लबेह किं एत्थ मोरउल्ला भो। सारं धम्मस्सवि जीवियस्स जिणपूयणं धणियं ।।४१॥ मुक्खंगमसंदिद्ध बुद्ध सिद्धतमज्झयारंमि । उस्सिसलमयमाणं साणं को कुण मगु गणणं ॥४२।। जाओ सत्थविवाओ दुग्गइगमणम्मि जो महोवाओ। परमत्थि नेव कुसलो तम्मज्झे कोऽवि तत्तन्नू ।।४३।। तत्थेगे इय भणिरा अमुगे गच्छम्मि अमुग आयरिओ। अन्ने वयंति अमुगो साह जं भणई तं सच्चं ॥४४॥ केवि ह जंपति इमं किमित्थ बहु पलविएण एएण । अम्हाणं सब्वेसिं पमाणमायरिय सावतो ॥४५।। तव्वयणं पडिवन्नं सव्वेहिदि एवमेव होउत्ति। हकाराविति तओ लहमेए सूरि मावजं ॥४६॥
सो संपत्तो तत्तो सत्तहिं मासेहिं दूरदेसाओ । निम्ममनिरहंकारो सारो चरणुज्जलगुणेहिं ।।४७।। 5 दिट्ठो तत्थेगाए अज्जाए धम्मकजसज्जाए। तवसा तणकयतण घणुब भब्वंगिसिहिसुहओ ॥४८॥
तइंसणखणविम्हियमणाइ एयाइ चितियं चिते। कि एस मुत्तिमंतो अरिहंतो कतिदिपतो ॥४९।। K: अह धम्मो रूवघरो अहवा निजरतरू सुरतरू वा । इय चितिय तिपयाहिणपुश्वि सा पणमिया पाए ।।५।।युग्मम्।।
संघट्टिओ य सहसा निउत्तमंगेण हरिसविवसाए। न ह पडिसिद्धा मुद्धा तेण य स साहुणी गणिणा ।।५१।। दिट्ठा दुद्रुमणेहिं समणेहिं तेहि तीइ बेलाए। तत्थागएहि तव्वंदणत्थमञ्चंतपावेहि ।।५२।। | अह से सूरी विट्ठइ तत्थेवाऽवितह सिद्धिपहदाया। मायानिम्मुक्कमणो गुणोअही मुणियसुत्तत्थो ॥५३।।
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