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________________ मर्मा उपदेश- मियमहरमंजुलाए सोमालाए गिराइ भन्वा । सुत्तत्थमुवइसंतो खतो दंतो कहर घम्म १५॥ तह चेव सद्दहति य बहंति तस्साणुवित्तिमंगेसु । संसारुविग्गमणा समणोवासगगणा तत्थ ।।५।। तस्स य वक्खाणखणे चउदसपुब्वंगसारमायायं । गच्छाचारपवतगमहानिसीहास पंचमज्झयणं ।।५६।। Tol एसा तम्पयगाहा समणायारम्मि जा निराबाहा । अवइन्ना पडिपुन्ना गुणेहि समणाण बहुमन्ना ॥५७।। ॥१३॥ जत्थित्थीकरफरिसं अंतरिय कारणेऽवि उत्पन्ने । अरिहावि करिज सयं तं गच्छ मलगुणमुक्कं ।।५८।। तो गोयम सावज्जायरिएणं अप्पसंकिएणेव । चितयमेवं चित्ते सुत्ते निस्संकिएणावि ॥५९।। KK जइ इह एवं गाई जहूदियं नग कहेमि जणमज्झे । तो तइया अजाए बंदणवष्टियाए महपाया ॥६०॥ संघट्टिया सिरेणं तं दिटुमिमेहि दुटुसमणेहिं । जह मह साबजायरियनाममारोबियं सहसा ॥६१॥ KA तह किमवि अन्नमवि मे काहिंति कुनामधिजमज धुवं । को वा खलमज्झगओ साहूवि न हासमिह वहइ ॥६॥त्रिभिविगेषकम्। मुत्तत्थमन्त्रहा जई अहं निरूवेमि गविजो संतो। आसायणा य गाई तो जायइ जाणगस्सावि १६३।। ता कि किजइ इत्य उ फुडमेयं संकडं महावडियं । एगदिसाए बग्धो नइपूरी बहइ अन्नत्थ ।।६४॥ वक्खाणेमि किमन्त्रह अहवा हा हा न जुत्तमेयं मे । जो सुयनाणस्स दुवालसंगरूवस्स एयस्स ॥६५।। हा सलिबोऽवि पमायवसा न साहए सचमत्थवित्थारं । सो दुत्तरभवजलाहिं न हु तरइ अणंतसंसारी ॥६६॥ युग्मम् ।। हवइ होउ तं चिय जठियं चेव पनविरसामि । गाहत्थं परमत्थं जाणंतो नेव बुड्डिस् ॥६७।।
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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