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________________ उपदेश- सप्ततिक १२011 भो भो भन्वा सब्जयरेण धम्मम्मि कुणह उज्जोयं । उजोयं पावमहातिमिस्ससंभारमहरणे ।।१९।। सन्म सम्मतबह दुकर बुरीगुर : जह लहु सिद्धिपुरीए लहेह वासं निरायासं ।।१५२।। निम्मायब्वं निम्मायचेयसा चियवंदणं च तिकालं । तप्पहूपूयापुब्बयमउब्बसिवसुक्खलाभकर ।।१९३॥ प्रयापरिणामोऽवि हु भवाइ भवादारपारतरणाय । हरणाय दृहसयाणं मपन्नइ सुक्न करणाय ।।१९।। जो जयपहणो पयपुयणम्मि निरओ भवाउ तह बिरओ । अरओ बिसयमुहम्मी अरओ सो लहइ परमपयं ।।१५।। तह पचन मुक्कारो सारो संसारसायरे घोरे 1 रयणोंब्ब अइजदारी धरियध्यो बहुपयत्तेण ॥१९६।। एसु च्चिय दुहसंचयहरणो सरणो अणं तसत्ताणं । भवकूबसमुद्धरणो मरणोवद्दबहरा होइ ।।१९७।। जो झाएइ तिमंझं वियतियच उदार मट्ठसायमहबा । सो रजरिद्धिसिद्धील द्धिसमिद्धी लहइ धन्नो ।। १९८।। सब्बस्सुममुलित्ता बुज्झिता परमतत्तभूयमिणं । मरणखणे जो सरई अणुसरई सिवसिरि सो उ ।।१९९।। जो न लहइ मतगणं हीणो दीणो दरिहि ()ओ सो उ। रोगी सोगी जायइ दोहागी भमइ भरिभवं २०॥ | गुरुवयणमिणं सुखा बहुओ लोओ सुसजियपमोओ । जिणपूणिकताणो जाओ परिमिट्रिझाणपरो ।।२०।। अह पुच्छङ् सच्छमई राया समए मए पुरा पुन्नं । किं कयमेरिसरिडीए भावणं जं जए जाओ ॥२०॥ M आह गुरू च उनाणी पुटवभवे रायगिहपुरे आसि । अइआरंभी तह भद्दओ व मालिओ रायसेहरओ ॥२०३।। . सो अन्नया समओ घन कुममा जिशहरस्संतो। हवण सबवेलाए सावयजण विहियमेलाए ॥२०४॥
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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