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________________ ॥८ तम्भदुराए दीसंति सुंदरा णेगतुरगसंदोहा । बहुहत्थिसत्थकलिया जायाओ हत्थिसालाओ ।।४।। कुटागारा भंडागारा धन्नेहिं तह धणेहिपि । तस्सासेसा भरिया जह नइपूरेहिँ जलनिहिणो ।।४१|| अह सीमाभूमिगया निवा असूयागया इय भणंति । सेोऽवि हु को अत्थि भडो जो इणमस्सं अवहरेजा ॥४२॥ ॥ बाहरियं तो तीरदिएहिँ नरपंजरंतरगओ सेो । ना केणवि अवहरिउ सक्को सक्कोऽवि जइ एइ ।।४।। जह गई एगारो जापान ठिकषि तस्थेसा । राया जंपइ एवंपि होउ न लहेई अवगासं ॥४४॥ तत्तो तेण सरगट्टिएण खुद्देण कंटएणस्सो । विद्धो मम्मपएसे कहमवि समयं लहेऊण ॥४५॥ RAI सहमेण तेण सल्लेण सल्लिओ घल्लिओ य कट्टम्मि । परिहायइ पइदियहं चारिजंतोऽवि जवचारि ॥४६।। B रना भणिओ कह एस दुब्बलो बलजुओऽवि वरतुरओ । घोडयबालेहुतं नाह तयं न हु बियाणेमो ।।४७।। वेलाई नोरपाणं घासग्गासस्स दिजए खाणं। तहवि हु जइ दुवल्लं एस असज्झो धुवं वाही ।।४८॥ तो रन्ना सो विस्स दाविओ ठाविओ य तदभिमुहं । तो वञ्जरियमणेणं न कोवि रोगुब्भवो अंगे ॥४९।। अब्वत्तमत्यि सल्लं तुरयस्सेयस्स रजसारस्स । तत्तो तक्खणमेसो उल्लित्तो सुबुहुमपंकेण ॥५०॥ सल्लट्टाणे उन्हत्तणेण सुके जहग्गितावेण । नाउं कड्डिय सल्लं खणेण सज्जीकओ तुरओ ॥५१॥ जह घोडओ य अन्नो अणुद्धियंगटिओरसल्लदुहो। न हु संगामसमत्थो तहा ससल्लो मुणी नेओ ॥५२॥ H ॥८५।।
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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