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________________ ॥२७॥ नानिशर आधिक्यं जानिस्मरणराज्यादिसद्यस्कधर्मफनप्राप्तिदर्शनविद्याचमत्काई गदि मुगदिन्तिः संकटपातनादि च ॥ ६६ ॥ तत्र रक्तस्याप्यतिशयात्प्रतियोधे निदर्शनमुदायननृपः, नयाहि-त्रीतनयपत्तने पृश्वीपनिमदायनस्तापसधर्मरक्तः ॥ ४ ॥ नत्राऽन्यदाऽगमन् पानवणिगेकः, प्राभृतयञ्च पृथ्वीपनये गोशीर्षचंदनदास, व्यज्ञपयञ्चेद 8 देवाधिदेवस्य प्रतिमा कर्त्तव्यनि कथयित्वा देवन मर्मतत्समर्पितमिति ॥ ६ ॥ श्री नुपदेशरत्नाकर, न्यां अतिशय एटचे अधिकपाj, अने ने जातिम्मरणकान अथवा राज्यादिकनी प्राप्तिम्प धर्मना ६ नुग्न फलनी पामिन देवाव. विद्या चमत्कार आदिक, नया देवता आदिकोयी दुग्यमा पामवा आदिकरुप | जाणवू ॥६६॥ त्यां रक्तनं पण अतिशय यो प्रतिबोध थवामां उठायन राजानं दृग्रांत नाग ने नीचे मुजब : बीतन्य नामना | नगग्मां नदायन नामे गजा हनो, अन ते नापमाना धर्ममा आसक्त हतो ।। ६७॥ एक दहामो ने नगरमा एक बहाणबई। व्यापार अान्यो: अन ने गजाने एक गोशीपनंदनतुं लाक रंट कयुः अने विनंनि करी मने आ काट देवनाए एम कहीन आप्युं 3 कं, आमांयी देवाधिदेवनी मनि बनावव ।।१०॥
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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