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अन तथी एटो वे कहां कारणयी अहीं, एटने आ उपदेशरत्नाकर नामना ग्रंथमा नवा नवा नंदोबसे करीने घणा मुकत नपशाने ई कहीश: एवो (काव्यना) संबंध . हवे तेमाना केटाक दानज नाम अपने | देखा . एक दिवसमा जेनुं व्याख्यान थप शके, तेवा उपदेशा अकाहिक' कहवाय. तिथी अन्य चन्दने हरेकनी साये जोमवाथी तंाथी अन्य एटो व आदिक दिवसामा जेआर्नु व्याख्यान या शक एवा उपदशो जाण वा. आगम ए मूत्रने मूचधनाम होवायी प्रागमन अनुसरनाग एटो आगमना आलावा आदिकना अर्यरूप पदशो जाणवाः नेमज नयी अन्य एटसे एकरमोना विचार आदिकना अर्थरूप. तश्च पातानी बद्रिय रचनां काव्य नथा गाया आदिकरूप उपदेशो जाए वा. गंजीर एटलं गहन अर्थोवाळा, अन तेश्रोथी अन्य च प्रगट अर्थोवाळा उपदेशा जाए वा. फळ एटने पुण्यपापनां फळीने प्रकाशनारा, प्रने तेथी अन्य पटले पुण्यपापानां स्वरूप तथा कारण श्रादिकने प्रकाश्वारूप उपदेशो जाएवा. अहीं 'अहिकादिक' चार पदानी 55 समास करीन पछी बहु वचनांत 'एतदन्य' इन्दनी साधे ६ समासकरवी. वळी मिथ्याविनी प्रत तथा 'इतर शन्दन दरंक पद सार्थ जोमवाथी नार्थी अन्य प्रत पटो मिश्र सम्यग हिओ त, तेमज नको प्रत तथा तेायी अन्य | प्रते एटझे कठिन आदिक मतियाळानो मन अान् ग्रहण करेल, एवा मिश्यान्वे करीन ते शास्त्रोना नपदेशने नहीं नायक प्रवाओं प्रते. बळी पमितो प्रने एटो पातानां शासननु अनुकगण कानाराओ मते, तथा अन्य शासन- झान | धगवनाराको प्रते तथा अन्य प्रने एटले मुग्ध आदिको प्रते पूर्वनी पर इंछ समाम करने से, योग्य एवा उपदेशो, एवी रीतना विशेष पदनी सर्व जगोए अध्याहार जाणवो.
- पछी पूर्व योजना पदानी साथ समास करवा. ताना जे नाव, ते तेश्रांनी योग्यतापाj कहं वाय, ने श्रा दिक जेदाच करीने आदि शन्दरकी गना, मंत्रि. कृत्रिय, प्रापण, आदिकने योग्य, एवा उपदेशानं ग्रहण करतुं ॥ २४॥
श्री उपदेशरत्नाकर.
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