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________________ नौतिकशिप्याश्चात्रोदाहरणं-गोदग्रामे सरको नाम नौतिकाचार्यः, तस्य नृयांसः शिष्याः, परं न ते किमपि पति, गण्यति, क्रिया वा कुर्वते ॥६३ ॥ किंतु निनावा र्तात्रिकथादिपरास्तिष्पति, तथापि तत्रत्यो भृशं मूम्यों सोकस्तद्गुणरंजितोऽहमहमिकापूर्व तेषां जोजनवस्त्रादिबहादरेण ददाति ॥ ६ ॥ तेनानिशं यथेचाहारविहारादिना पुष्टवपुषो महिषप्रायास्तेऽनुवन् : ननोऽन्यदा तद्ग्रामवासिना ग्राम्यविना जेन ग्राममध्ये वयाचनापिE0किमप्याजमानेन तान दृ विस्मयापन्नेन साश्चर्यमपन्लोकितास्ते. जरटकतवचट्टा झंबपुट्टा समुट्टा । न परति न गुणंति नेव कव्वं कुणते ॥ वयमपि च पगमो किं पि कन्वं कुणामो । तदपि सुख मरामो कर्मणां कोऽत्र दोपः ॥ ६६ ॥ अही नातिक शिम्यान दृष्टान् कह है—गोद गाममां मरक नामे एक नीतिक आचार्य हतो : तेने घणा शिप्यो हताः परंतु नेओ नहीं कंह नाना, गणना के क्रिया करना; ॥६॥ परंतु निद्रा, वानी नया विकयाओमां नत्पर यहने रहेता ; तो पण त्यांना अत्यंत सर्व लोक नेना गुणोयी खुशी याने प्रथम आपुं, हुं प्रथम | आप, एम मानीने नेओने भोजन नया बख अादिक वह मानयी प्रापता हता ॥६४। अने नेयी इच्छा मुजब आहार विहार आदिकयी पामा जवा मानना शरीरवाळा तो था गया; पीपक दहामो ने गाममां वसगनारा तथा गायझीया कवि, एवा एक ब्राह्मणे गाममा घणी याचना करी, परंतु ।। ६५ ॥ कंड पाण नहीं मळवायो ने नानिक शियोन नाइन आश्चर्य पाम तेओपर एक कविता कररीके, जरमा, उगाग नया चटुमा एवा प्रा झोको नयी जाता, नयी गणता, के नयी कविता करी जाणना, उनां पण रुपपष्ट थाने फरे, अने अमो जपीये छीय, नम कईक काव्य पण करी जाएये जीये, तो पाग नूग्वे मरीये जीये, माटे नेमां कानो शो दोष ? ।। ६६ ।। . श्री जपदेशरत्नाकर. 4....460888
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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