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________________ प्रवित्रजिषुखापत्याऽनिधिस्वसुताऽप्रत्रजितपूर्विशेषाशेषतपस्यार्थितपस्योत्सवकरणतत्कुटुंबनिर्वाहादिसाहाय्यकृत्तछेतुकतीर्थकरनामकर्मार्जकश्रीकृष्णनृपादिवत् ॥ ५० ॥ श्रीकृष्णादीनां कषांचिदंतःसम्यक्त्वादिनावेऽपि विरत्यादिविशेषगुणाऽनावेनाऽनुदराकन्येत्या दिवदंतरसारत्वं ज्ञेयमिति हितीयो जंगः ॥ ११ ॥ अन्य तु ब्रातृकात्रपुत्रादिस्वजनपरिजनादिप्रतिबोधाऽशक्ताः परेषां धर्मसाहाय्याद्यदमाश्च, सम्यग् धर्मानुष्टानैः स्वं जवातारणेनोपकुर्वतीत्यंतः साररलतुट्याः, पूर्वगंगोक्तसहदवाऽमजविमलवदिति तृतीयों जंगः ॥ ५३॥ दीक्षा लंबानी इच्छावाला पोताना पुत्रोने निषेध नहीं करनाग, तथा पाताना पुत्रोए दीका श्रीवा पईयां ।। वाकीना सबळा तपस्याना अर्यायानी नपस्याना नन्सव करनारा, तथा तेओना कुटुंबियाने भाजी18|विका आदिकनी साहाय करनारा, तथा तेथी तीर्थकरनाम कर्म उपार्जन करनारा श्रीकृष्ण राजा आदिकनी पिठे तेवा श्रावको जाणवा ॥ ५० ॥ श्रीकृष्ण श्रादिक केटझाकोने अंदरथी ममकीत आदिकना जाव होतं छते पाण निति आदिक विशेष गुणना अनावे करीन 'जदर बिनानी कन्या' इत्यादिकनी फेने अदरर्थी असारपा' जाणवं एवं गगते वीजो नांगो जाणवो ॥५१॥ बळी कंटबाक. श्रावको नाइ, बी. पुत्र आदिक मजन नया परिवार आदिकन प्रतिवोधवान अशक्त होय, तमज वीजाश्रोन पाण धर्मनी सहाय आपवामां असमर्थ हाय , परंतु सम्यक कारनी धमक्रियाओयी फनः पातान समारथी तानारूप उपकार करी शक जे, मारे नी अंदरची सारवाला रत्न मरवा ने (कानी पेठे? तोके। पूर्वना गायां कहेला महदेवना मला जाह विमानी माप एवी रीत श्रीजो जांगो जाणको ॥ ५३॥ 6.०००००००००००००००००००००००००००० श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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