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________________ अथ पाकस्थाने सहागतपथिकेनाग्नियाचने मत्पाश्चं सुंदव, नाग्निमर्पये, इत्युक्तौ पथिकनाक्रोशने, वपुर्वध्यादिना जापने, प्राणांतेऽप्यहोने स्वदिव्यरूपमातोत्र प्रशंसात्तोक्तौ वनाऊत्तरीय विपापहाग्मणि निवध्य देवगमनेष्टं सहदेवादीनाना तोक्नौ ॥ ३३ ॥ नगरकोनं दृष्ट्वा प्रश्ने पुरुषोत्तमो राजाऽवाहिदष्टपुत्र जीवितुः श. ज्यादानपर कामप्रतीत्युशी सहदेशेष यज्ञाच्चेबांचनान्माणि बारया पटह पश नजीवने सहदेववचसा ॥ १४ ॥ गज्ञा विमनपाचे आगत्य न्यान्यर्थने, तेनान्नियाऽग्रहणे गजारू तस्वगृहनयने सहवाय गज्यादाने विमनस्याऽनियनोऽपि श्रेष्टिपदं गृहादि चार्पयन् ॥ ५ ॥ ___ पछी मानी जगोग. ते माथे आया पयप नेनी पामेयी अग्नि मागत आते, नाण कयु के, तुं मारी पास जोजन कर हु अनि आपीश नहीं; ने मांजळी ने पंथिए क्रोध करी शरीर बवाग्वा आदिकया कानन चीवरावने उते, नया पाणन पाण तेने नहीं चलायमान यत्रो जोड, ने पंथीरूप देवे पोनानं खरं मप प्रगट | कर्य, नया में कोसी नेनी प्रशंसा आदिकन वृत्तांन नेने कषु, नया आग्रहवी नेने दपढ़े कर दर करनारुं मणि बांधीने देव गये उने, ने वृत्तांन विमझ सहदेव आदिकाने कई ॥४॥ एट्यामां नगरमा कायान थनो जोड पवार्य। मालम पम के, पुस्पानम गजा आजे मां भवेन्ना पानाना पुत्रन जीवामनारने अरg राज्य आप-18 यांनी पट वगमा : नेयी सहदवे बलात्कार विमनना बखून यी मणि अक्ष परहने स्पशी नेने जीवतो का, तथा सहदेवना वचनयी ॥४४॥ राजा विमन्न पासे आवी अग्धु राज्य मेवानी प्रार्थना करवा लाग्यो । त्यारे विमले आरंजना जयथी ने नहीं अवायी, राना तेने हायीपर नमाची पोनाने पर अइ गयो, तया सहदेवने अरg गज्य भाषी, विमलनी इन नहोती. नोषण नेन राजाग शेउनी पदवी नया घर आदिक प्राप्यु ।। ४५ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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