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________________ ॥१४॥ अथ श्राघानां सा नाव्यत, तत्र श्राघाः केचिमक्रियासु प्रमादित्वेन स्वं नवाब्धों मजयंति, धर्मकारणतउपदेशतत्साहाय्यदानादिविकतत्वेन परं स्वजनपरिजनाद्यमपि न तारयंतीत्युजयोपकाररद्विता इति काचमविजययाप्यसाराः, सहदेववत तजझातं यथा-॥ ३॥ कुशस्यत्रपुरे विमनसहदेवो वातरौ, साधोः पार्श्व प्रतिपन्नधर्मों, अन्यदा तौ नागदशे ऽध्याय चातुः ॥ ४० ॥ अर्धपये विमनः पथिक्रेन प्रांजननीरादियुतपयं पृष्टो न जानाभीत्याह पापत्तीकाया, व पायसीलियो पत्र पण्यायः ॥ ४१ ।। निजपुरं वदेति. राजधान्यां वसामि, न मे किंचिन् : त्वया सहा गच्छामीति च पृष्टाः स्वेच्छया गच्छतां वः के श्यमिति चावादीन् ॥ ४॥ हवे श्रावकोनी ते चाजगी कहे : त्यो केटनाक धारको धर्म क्रियामां प्रमादी रहवागी पोटाने संगार समुद्रमा ७मा ने तमज धर्म करायवो. ने मंबंधि उपदेश देवा, नया ने माटे सहाय आपत्रो. इत्यादिक नहीं | करवायी परने एवं शेताना मंबंधि नया परिवार आदिकने पाप नेनो तारी इकना नयी, मांट तेओ बन्ने नीने उपकार विनाना होय . अने नयी काच महिनी पेठे सवनी माफक तेश्रो बन्ने गीत सारविनामा । ने सहदेव उदाहरण नीचे मुजर छे !!शस्था नाम नगगां विभन्न अंने मदन न या तोष साध पासेथी धर्म स्वीकार्यों हनीः एक वखने नेलो धन भाटे पूर्व देशमा वाट्या ५०! मार्ग काइ माणुए विमान सागं पाणी आदिकवाला मार्ग पृछ्या त्यारे विमने पापना करया का के, गने नेनी खबर नयी; पछी ज्यारे तेणे एम पृत्यु के तमो क्यों जाओ बी न्यारे नेणे कधु के, ज्यां व्यापार मळे न्यj ॥ ॥ तारा नगरनु नाम कहे? एम ज्यापी नेणे का के, इंगमधानीमा रहुं , मारु क नयी; तारी मात्र हुँ : एम प्रचवायी तणे कधुके, नमारी इजाथी नानता एचा नमोन अमोरो शो संबंध ? ॥ ५ ॥ श्री. नुपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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