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________________ -*♠♠♠♠♠ श्रीकुमारपानरेऽस्य बहुववसरेषु ऐहिकोपकारकृत्पार त्रिकोपकारकुच्च श्रीमसूरिः, ग्रामनृपादेर्द्विधाप्युपकारिणः श्रीवपनर्वािदयश्चात्र निदर्शयितव्या इतितुयों जंगः ॥ २७ ॥ एषु प्रथमजंग गुरवस्त्याज्या एव द्वितीयतंगगुरुवोऽपि सुगुरुयोगसंजवे त्याच्या एक तरी प्रमादाय श्रोतॄणां तटुक्तधर्मेऽयनायोल्लासादिना योन उपकार सिद्धिरिति ॥ २७ ॥ यथोत्तरमुत्तरजंग गुरुयं च योग्यमित्याराज्यं श्रेयोऽजिरिति इत्युक्का श्रीआचार्यानऽधिकृत्य चतुभंगी || श७ ॥ अथ श्रमगोचरा सा जाव्यते, तथाहि श्रमणानां स्वोपकारः सम्यक चरणकरणसमाचरणादिः, परोपकारश्च तपस्वियादिः ३० ॥ अहीं श्री गजाने से ओक संबंध उपकार करना तथा परलोक संबंधि करना चंद्राचार्य तया श्री आगमना दिनेबारे उपकार करना श्रीनगुरु आदि जाएगा एवं चांगोजागी || 29 ने पीपा जांगाना गुरुवा क. वीज दांगाना गुरुप मुगु गायक केके मा आजीने नेमका धर्मपर श्रोताओंने आम्थानों उवास घ्यादि न पाओ तरफथी उपकारनी सिद्धिपती नर्थ ॥ २८ ॥ कही ने पीना ने जांगावाला गुरुओं योग्य. मारे कल्याणना अर्था आराधना जोइये, एवं रति श्री आचायन आश्रीने चीनंगी कही || ५ || साधने आश्रीने ते चोक–सानो स्वोपकार एटले सम्पर्क प्रकार करना समाचरण आदिकरूप जावो, तया परोपकार गुरु, तपस्वी, बाल, वृद्ध, तथा रोगी साधन व्यावच्छ आदिकरूप जावो ॥ ३० ॥ 25 00000000000 . श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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