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________________ स धन्यऋषिमत्ता अच्युते कट्पे प्रापत्, सिंहस्तु चतुर्थे नरके: अच्युतकरूपाच्युला पुनः स चंपायां दत्तश्राद्धस्य जिनमती नार्या, तयोः पुत्रोऽजूत् वरदत्तनामा ॥ ॥ १७ ॥ स आवाळ्यात् संविग्नो यौवने विशिष्य सम्यक्त्वमूत्रधर्मोद्यतो दानी विवेकी मधुरत्नापी शांतो विनीतश्चाऽजूत ॥ १५ए ॥ प्राग्नवनार्याजीवस्तु नरकाव्युत्वा जवं नांवा तस्यैव भेष्टिनो गृहे दासीपुत्रोऽनूत, स जुष्टो वंचनाशीयो दासी. पुत्रेति नाम्ना ख्यातोलूत् ॥ १६० ।। क्रमतः पितरि स्वर्गते वरदत्तो गृहखामी बभूव, स प्राग्नवस्नेहाद्दामीपुत्रं सहोदरवत् पश्यति, वस्त्रादि दत्ते ॥ १६१ ॥ दासीपुत्रस्तु वरदत्तं शत्रुवत् पश्यति, तथापि तजनार्य किंचित् किंचित् धर्म कुरुते नावं विनव श्री उपदेशरत्नाकर ___ एवं रीते ते धन्य मुनि मृत्यु पामीने अन्युन देवझोकमा गयो, तया सिंह चायी नरकं गयो, पनी अच्यु-|३| त देवलोकी चीन बळी ने मुनिनो जीव चंपा नगरीमां दन श्रावकनी जिनमती नामनी बीनी कुतिए वरदत्त नामे पुत्रम्पे थयो ।। १५० ।। ने नेक बाध्यषणायीज वैराग्यवान हतो तया यौवन अवस्यामा विशेष प्रकार सम्यक्त्रमन श्रावक धर्ममा उद्यमवंत थड दानी, विवेकी, मधुरनापी, शांत नथा विनयवान् थयो | Pum || बळी पूर्व जवनी सीनो जीव नरकथी चवीने तथा संसार जमीने नेन शेजने घर दासी पुत्र थयो; ते दुष्ट उगारा दासी पुत्रना नाम । सिक थयो ।॥ १६ ॥ अनुक्रमे पिता देवलोक गये बने वरदन घरनो मानीक थयो। तया पूर्व जवना स्नेही ते दासी पुत्रन सगा नाइ नरीक जागा झाग्यो, नया तेने बस आदिक आपदा वाम्यो ॥ १६१॥ परंतु दासी पुत्र तो नेने शत्रुनी पेने जातो हनी, तोपाग नेने बुझ गग्वना भाटे नावचिनाज केक कर्म ने करतो हनो 11.६॥
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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