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________________ ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० न बंदकप्रनकपाउकेयः । प्रवारयामोऽवणिकाःसदैव ॥ इत्यार्यमंगौ वदति प्रदर्गजयादिशेत्येव जना जगुस्ते ॥ ३३ ॥ निष्टागरिष्टश्च तपोनिधिश्च । चारित्रवांश्चेति जनैः रसुवानः।। मुनिः स मानाख्यमहाङ्गितिध-प्रोतुंगशृंगं परिरोप्यते स्म ॥ ३४ ॥ वर्धिएणु ऋभ्युत्तरगौरवाग्व्यं शृंगांतरं तत्र चरन्नवाप ॥ अहो अहं पूजितपूजितांघ्रि-रित्येष मन त्रिजगत तृणाय ॥३५॥ एवं रसगौरवसातागौरवरूपे अपि शृंगे प्राप, तत उद्यतविहारं त्यक्त्वा नित्यवासं प्रपन्नः, जैनकुमादिषु ममत्वमंगीचकार ॥३६॥ततः,आत्मस्तुतिं श्राकृतामयाऽन्य-निंदाविमिश्रामनुमोदमानः॥ मिथ्याजिमानाऽतिनिविष्टबुद्धिमिथ्यात्वमूरीकृतवानहंयुः ॥ ३१ ॥ वंदना करनारा, बनारा तथा जाण नागनाथी अमागे तो आरा आवतो नयी, अने एवी रीते अमोन | है हमेशा कणवार पण फुरसद मळती नथी । एवीगीन अहंकारथी मंगु आचाय बोलते ले बोको तेओने 'तमो जय || पामा हुकम फरमाबा: एम कहवा लाग्या || || बळी तमा निष्टामां गरिष्ठ छो, तपना जंमार गे, तथा चारि81 युक्त गे, एवीगीत स्तुति करता सोकोए ने मुनिन मान नामना महान पर्वनना ऊंचा शिखरपर चमाच्या ।। ३४॥ बळी एवं रीते ने मानरूपी शिवरपर चमता था, छिपायता एवा मुकिमारव नामना वीजा शिवरपर ते चड्या; नया अहो: प्रजनीको पण माग चरणो प्रजजपम विचारीन ने त्राणे जगनने नए समान मानवा जाग्या ॥ ३५॥ नया वीसीले अनुक्रम ने मंगु प्राचार्य रस गाव नश साना गौरवरूपी शिवरपर पाए चड्या नथा पछी नधन विहार तीन एकज जगाग रहेका सारा नया जैनकुळ आदिकमां ममता करवा जाग्या ।। ३६ ।। पड़ी वीजात्राए 8) काली निहायी मिश्रित थयनी एवी श्रापकाए कंग्नी संतानी नुनिन अनुमोदता थका, नया मिध्यातिमानना प्राग्रहवाळी युक्त था थका अभिमान बानि मिच्यान्वएणु जजवा साम्या ।। ३७ ॥ x गोचरी प्रमुख पाटे जन कुजमां के अन्य अमक कुन मांज जर्नु बगर बाचनमां ममन्व घरवा आग्या गवां अर्थ संजय .. श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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