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ततः प्रथमं ऊन्द्वः प्राह, मायाविहारंमिगणण दिया । नवामिश्रा कंचणनूसिअंगी । वग्विनचिनाणमय न नायं । स कुंमलं वा वयांण नवनि ॥ ४ ॥ इत्यादिप्रकारैः सर्वैरप्यपरदर्शनिन्निः शृंगाररसव पूग्निा सा समस्या विसंवदति धर्म ॥ ४ ॥ मंत्र्याकारितो जनमुनिस्तु-वतस्स दंतम्स जिदिअम्स । अजाप्पजोंगे गयमाणसस्स ॥ किंमकणपण विचिंनिया । मकुंमचं वा वयाणं न वत्ति ॥ ४॥ ॥ इति नामपूरयत, तच्छुत्वा चमचक्रे पृथ्वीशक्रः, यतः, कणादसारं सारं वा वस्तु सूहमं परीने । निश्चिनानि मात्तर्ण । तयांचयशिवोच्चयो ॥ ५० ॥ ततः प्रतिबुद्धः प्रपन्नवान् जिनधर्म क्रमाचिवपदमपीति ॥ ५५ ॥
न्यार प्रथम बाहदई नवाला बांच्या के, हुं ज्यार मात्रा, विहारगां गया हता, न्यारे मुवी इपित यत्रां रीवाळीवी न्यानी में जो परंतु माझ चिन विक्रिम वायी में जाायु नहीं के, मुख कुंमासहित AE के नहीं ।। 1 ।। एवी गरीने बीजा सवा अन्य दर्शनीाए पण न समस्या अंगार रसीन पूर्ण करी,
अन नेयी ते धर्म माय विवाह करनार। यः || 10 पत्री मंत्री बोलावता जैन मुनिए ना। नीच जब त ममाया पूरी ) कान, दांत, जिनंद्रिय. नया जन मन अध्यात्म योगमां गांजे, गवा मारे नेतुं मुग्व बुरजवावं
के नहीं ने मंबंधमा विचार कम्बानीनशी जर! || || पर्व ने जैन मुनिए ने मम:या पूरी ने मानलीने गजा ना आश्रय पाम्या कमके मार अयवा अमार बस्नुनी पका कागवाग्मांज निपुर,मनि करीन भी कागाके वायु कना पुंमाओना समूहना नया पन्यगना ममहनो नग्न निश्चय करी से 3 || ५० ।। एत्री गीत गजाण पनिवोर पामीन जन धर्म अंगीकार कर्णः अने अनुक्रमे ने मोके प गयो।। १ ।।
८८८CONNECRECENCE...
श्री जपदशरत्नाकर
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