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अपरीक्षकः पुनर्मोदकादिग्रवणतो रत्नादित्यानिशिश्वादिवत् सारत्यागेना सारयादी स्थात् ॥ ३८ ॥ नमुनं-परीक्षाका यत्र न संति देशे । नायनि रलानि समुद्रजानि ॥ आनीरदेशे किम चंकांतं । त्रिनिर्वराटेः प्रवदंति गोपाः ॥ ३ ॥ नतः सन्यग्धर्मवस्तुनोऽपरिदकत्वादयोग्यः मः, कुमचं नृपकथा त्वियं ॥ ४ ॥ कांचनपुरे कुमचंनुपात: कुरुते राज्य, मंत्री गडकः, स जैनो राज्ञोऽग्रे जिनधर्म श्लाधने, राजाद कयं ज्ञायते सत्यगेप धर्म इति ॥ १ ॥ मंन्यूचे. परीक्षया सारेतरवस्तुनिर्धारः,ययुक्तं-मणि तु पादाने । काचः शिरसि धार्यताम् ॥ परीक्षककरप्राप्तः काचः काचो मणिमणिः ॥ ४२ ॥
अने जे पीछा नयी करी इ.क्तो ने ना मोदक आदिकन अप ग्न आदिकनी न्याग करनारा वानक आदिनी पत्रे, मार वस्नुने डोमी असार वस्नुनै ग्रहण करनागंज थाय ॥ ३० ॥ का रे के देशमा पकको नयी, त्यां ममद्रमा उत्पन थनां रत्नानी मा पनी नयी; कमके आनीगना दशमां गोवाळीअाओ चंद्रकान मणिने त्राण कामानो कहे जे ॥ ॥ || माटे धर्मना नवने जे सम्यक् प्रकारे जाणनो नयी, ने अयोग्य जे. कुरुचंद्र राजानी कया नीचे मुत्र |४०॥ कांचनपुर नामना नगरमा कुमचंद्र नामे गना राज्य कर के तन गंडक नाम मंत्री ने जन होचायी गजा पामे जिनधर्मना वग्वाण कर न्यारे राजाप कह क ने धर्म मागे जे. वान केम जणाय? ॥ १ ॥ मंत्रीए कयु के, पर)का करवायी सार अमार बस्तृनो निर्धार थाय छ. कडी डे के, मणि कदाच पगे कचरानो होग, अने काचने मस्तकपर धागण करानो होय, परंतु ज्यारे नेत्रो परीक्षाकना हायमां श्रावे, न्यारे काच ने काचन परग्वाय अन मणि न मणिन परग्वाय ॥ ४ ॥
श्री उपदेशरत्नाकर
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