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सोऽन्यधात. इयं मंत्रिपुत्री नृपसत्तायां पूरितसमम्या अब्धनृपप्रसादाज्येति, सम्यस्या चयं ॥ २ ॥ लेन शुन्छन शुध्यति. पूरिता चैवं, यत्सर्वव्यापकं चित्तं । मविनं दोपरेणुनिः । सहिवेकांबुसंपर्का-तेन शुछेन शुध्यति ॥ २३ ॥ तच्चनकोशझं श्रुत्वा चमत्कृतस्तजनकमंत्रिणः पाबें पढ़त्रयार्थ पचति ॥ २४ ॥ मंत्र्याह, अकृतमकारितं शुन्द्वं मधुकरवृत्त्या लब्धं रागषविमुक्त मंत्रादिप्रयोगवर्जितमादारं यो जुक्त स मिष्टलोजी. अशुद्धं मोदकाद्यपि कटुकमेव ॥२॥ यमुक्तं-- अजय मुंजमाणो अ' यश्च सर्वजीवहितः सुवर्णाद्यर्थनिःम्पदश्च स बोकप्रियः, यः पुनः म्वाध्यायथ्यानपगे:वसरे शेने म सुखशायीति ॥२६॥
न्यारे ते मनुष्य नेने कयु के. आ मंत्रीनी पुत्री गमजामा मपया पर नि. नया गजान। कृपा मेळवीन ३ | श्रावे; अने में म्यम्या नीच मजवर ॥२॥ न शदी इद पाय' पबीतनी समयाने नीच मुजब पुग्छ। उ: सर्व व्यापक गजचिन दापासपी रजयी मनिन थय , त महिकमपी जवना मगयी जा शुद्ध थाय. तो नेथी अान्मा शुध थाय रे ।। २ः ॥ एव। न नीना वचननी कुझानता जान आचर्य पामेलो ने ब्राह्मण नाण ना पिना मंत्री पामे न ग पदोनो अर्थ पृथ्या लाग्यो ।। २५ । न्यारे मंत्री का के
(पोना माट। नहीं करवं. नहीं कंगवलं, शाम, मधकवृत्तियी मलेवं. गगप विनान तथा मंत्र आदिकना प्रयोग 18 विनान जजोजन कर , न मिशन जन कग्नाग नया अशक पवं वाम् आमिकनुं नांजन एण कमज
॥ २५ ॥ कयु । के-जगणा रहित नाजन कम्नार अनक जीवाना महार करवायी पापकर्म बांध में अने ननु कटक फल जोग , बळी. जे मनुष्य सर्व जीवाना हितकारी , नया मवा आदिक धनना निम्पह। ने लोकप्रिय ः तया ने समय ध्यानमां नर या यको अवसर मा जे, ने मुम्व मुनागे ।। ३३ ।।
श्री उपदेशरत्नाकर.