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________________ कयकः प्रोचे, 'मि लुजेअव्वं, सुहं सुएअव्वं, योगप्पिो अप्पा कायद्यो' एतत्पदत्रयस्यार्थ यः सम्यगवगवति पारयति च, तत्पाधैं सम्यगधर्मः ॥ १२ ॥ ततः स विविधान् दर्शनिनस्तदर्थं पृचन् क्वचिद्ग्रामे नपासमडे प्रापत्, ताफ्सपार्श्वेऽर्थ पृचति ॥ १३ ॥ सोऽप्याह, अस्मद्गुरुणाप्येवमेवादिष्टं, परमयों नाऽग्व्यायि, ततो मया स्वधियेत्थं क्रियते ॥ १४ ॥ मंत्रोपधादिविधिनियॉकप्रिय आत्मा कृतः, तेनादं मिष्टं नोजनं बन्ने, यह मवे निश्चितः सुखेन स्वपिमीति ॥ १५ ॥ तच्छुत्वा दध्यौ हिजः, नायमर्थः संगनते. यनः-मंतोसहिपमुहहिं । जाय जीवाण धायणं नणं ॥ ता झोगपिओ अप्पा । कह परनत्येण इत्र होई ॥ १६ ॥ श्री जपदेशरत्नाकर, कया करनारे कधु क, · मिष्ठान्न ग्वावं, मुरंब मु, नया झोकप्रिय आत्मा करवा पत्रण पदाना अर्थ || न सम्पक प्रकार जाणे ने. अन पाने नेनी पाम जनम धर्म ने ।। १२॥ पड़ी न ब्राह्मण जुद्रा जूदा दाना| बाळाने नेना अर्थ प्रनना थका कोक गायमां तापमना मनमा पहोच्यो, नया नापमन नेना अब प्रमचा माग्यो 18 ॥ १३ ॥ न्याग ने नापस पण का के. अमाग गुम्ए पण एमज कयु, परंतु नेनो अर्य कयो नयी, अन । | नयी ई मारी बुकिर्वक नीन मजद करवं ।।१४।। मंत्र नया आषधी श्रादिकनी विधियों में लोकप्रिय आत्मा ३ कयों अने नेी मन भियान जोजन मळे , अने आ मठमां निश्चित थइ मुग्वे मुनो गई 5 ॥१५॥ न मांजनीने ब्राह्मण विचायु के, आ अर्थ रागु पर्मी शकना नी कमर-मंत्र, औषधी आदिकी ग्वाम्बा जीबीना विधान थाय छ; माटे परमार्थी झोकप्रिय अान्मा शागन थाय? ।।१६।।
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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