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असम्खाणा अ नो । अस्थी जाग्गो विसेसधम्मस्स ॥ एअविसरुवणस्वो य । जाणियबो अजुग्गोत्ति ॥ ॥ अपिच, जह जोअणमि श्छा नजोवआण जहब अणुरागो ॥ तहअस्थित्तं सारं । परखाअपहाणांचनासु ॥ ॥ न य विजोवि हुविजंत । गुरुअरोगपि रोगिणं दटुं॥ अणनिमयतिगिबिंचि अ। निगिनिज बंबई कहवि ॥ए ॥ किंच, संयुक्ष्यमाण व जस्मनि वनिशून्ये, संजायमाण व वा बधिरे मनुष्ये, अर्थिववर्जितहृदि प्रविधीयमानः संपद्यते हि विफनः सुधियां प्रयासः, नतोऽर्थी धर्मस्य योग्यः सोमवसुविप्रवत् ॥ १० ॥ कौशांब्यां सोमवसुर्विप्रोऽन्यदा कयकाचे धर्म श्रुत्वाऽप्राङ्गीत, नोः कस्य पार्चे सम्यग् धर्माऽस्ति
श्री उपोशरलाकर.
एव) रीनना नपर वर्गवां अक्षणांचाळी मनुष्यने अयी जाए। अन ने विशप धर्मन योग्य - नया | नयी उन्नटा अहवालान अयोग्य जाणवी ॥9॥ बळी पण, जोजनमां जमा याय ने, तथा जेम बीपर अनुराग थाय ३ तेम परझाक संबंधी जनम चंद्राामां ज अधिपा धारण करवं, ते सातुन जे ॥ ७ ॥ जेने पोना माटे श्राप करावधानी इच्छा नयी, एव। महोटा गंगवाळा गंगीने जाइने पण तेनी दवा करवाने वध को षण गर्ने इच्छा करनी नयो ।। || बळी अनिरहित राखमा संघका मकवानीपो, नया बहेग मनुप्यमने नाषण करवानीप, अयोपणायो रहिन हृदयाला मनुष्य प्रने नुत्तम बुद्धिवानोनी ( थोपदेश प्रादिको ) प्रयास निफर थाय : मोटे सामवम् ब्राह्मणनी पत्रे अथी मनुप्य धर्मने योग्य ॥१०॥ कौशांबी नगरीमा सोमम नामना ब्रामग एक वर्ष कया कहेनार पासेयी धर्म संजळीने नेने पर के, नुनमधम कोनी पाम छ ।॥५२॥