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पघटना स्पष्टा, तत्रार्थिस्वरूपमाह, अत्थी पुण जो धम्मं । निहिमिव नदं गवेसए सम्मं ॥ तजाणगे अ पुन । सुविंआरी तृसए सहि ॥ ३ ॥ अन्यत्रापि. अत्यी एत्यं सो पुण । जो संसारिअजयं परिवहंतो ॥ एसोचिन परमत्यो । सेसोणत्योत्तिमन्नंतो ॥ ३॥ पुबइ गुरुणो तद्नेय । विसयववहार निन्नयागयं ॥ तस्स सवं अणुदिण । मज्क हिअं कयसमुद्राणो ॥४॥ धम्मिअजणेणुरजा । सजा अ ससत्तियो अणुटाणे ॥ वजइ अतबिस्छ-पवित्तिपवणं जणं दूरे ॥ ५ ॥ तक्कहनिसामणेण वि । हरिसिज विजय असुहकिच्चे ॥ धम्माणत्यीण श्मे । दूरविरुधासमायारा ॥ ६॥ आ गायानी पदरचना स्पष्ट : नेमां अर्थीनं बाप कटे : जे HIMA an
। कहे ३, जे माणम नष्ट ययेसा निधाधनने जेम, 18| तम धर्मने सम्यक प्रकारे गये , तया धर्मना जाणकारन पृड्याको छे, नेमज धर्मने मेळवीने जे मनुष्ट थाय , 11 | तेने उनम विचारवालो अर्थी जाणा ॥ २॥ बीनी जगोए पण कयु के के, अही अर्थी नेने जाणवो, के 18
ज, संसारसंबंधि जयने शरण करनो हाय, तया नम करवं नेज परमार्य , अन वाकीनु निरर्यक छ, एम जे 18 18मान , त अथीं ॥ ॥ कळी जे गुरुपते धर्मना जेद नया विषयंन पृष्ठं चे, नया संसारथी वैराग्ययुक्त ||
का इन हमेशा हृदयनी अंदर निश्चय व्यवहारपूर्वक ने धर्मनुं स्वरूप चिन , नेने अथीं माणयो ।। ४॥ बळी | १धी मनुष्यमने अनुराग धारण करे , नेम सपर्य थयोयको धर्मक्रियामां ने नपर याय के नेमज ज धर्मविरुद्ध
प्रति करनाग मनुष्यने दर तजे ॥ ५॥ वळी धर्मकथा सांजवामां पण जे हर्षित थाय जे, नथा अशज कार्यमां ने अनादरपाj धार चे, तया नणे विरुद्ध आचरणो दृर काँ उ नओने धर्मना अर्थी मनुप्या जाणषो ॥६॥
श्री जपदेशरत्नाकर
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