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________________ यस्तु किंचिदूनं सूत्रार्थमवधारयति, पश्चादपि च तथैव स्मरति स कंउहीनकुटसमानः ॥ ३६ ॥ यस्तु सक्लमपि सूत्रार्थमाचार्याक्तं यथावदवधारयति, पश्चादपि च तथैव स्मृतिपयमवतारयति स संपूर्णकुटसमानः ॥ ३७ ॥ अत्र विकुटसमान एकांतेनाऽयोग्यः, शेषा ययोत्तरं प्रधानाः प्रधानतराः ॥ ३० ॥ संप्रति चासनी दृष्टांतन्नावना, चाननी लोकप्रसिधा यया कणिकादि चाव्यते, तत्र यया चानन्यामुदकं प्रतिप्यमाणं तत्कणादेव गबति. न पुनः कियंतमपि काझमवतिष्ठते ॥३५॥ तथा यस्य सूत्रार्थः प्रदीयमानो यदेव कणे प्रविशति तदेव विस्मृतिपयमुपैति, स चासनीसमानः ॥ ४॥ श्री उपदेशरत्नाकर. परंतु जे कंक प्रोग एवा सूत्रार्थने धार। गवं उ. अन पाउनथी पण तंज मुनत्र जे याद राख , त कां-18 ग विनाना घमा सरखो , ॥ ३६ ॥ कळी जे शिप्य आचार्य कहवा सघळा सूत्रार्थने यथार्थ र ते धारी राव हे, ६ तथा पाळथी पण तेत्रीज रीत याद राखे , ने संपूर्ण घमा सरखो ३ ॥३७ ॥ अही जिद्रवाळा घमा सरखो एकांते अयोग्य , अने काकीना उत्तरोत्तर श्रेष्ट तथा वधारे श्रेष्ठ ॥ ७ ॥ हवं चाळणीना दृष्टांतनी नावना कहे जे चाळणी ए दुनियामां प्रसिक , के जेबमे करीन कणकी (आटो) आदिक चाळवामां आवे ते चाळामीमा रेमातुं पाणी जेम तुरतज निकली जाय , परंतु थामी वखत पण गरी शकतुं नी ॥ ३५॥ तेम जेने उपदेशातो सूत्रार्य ज्यारे कार्गमा प्रवेश कर के न्यारेज जूझी जवामां आवे के शिष्य चालाग। इग्बो ॥४०॥
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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