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पुनर्दत्त आह, वनं मा वदंतु, यागफनं किं, ततो मृत्युमाश्रित्योक्तं नरकगतिः, द॥ ५५॥
तेनोनमदं नरके यारमावि, गुर: ---- संदेहः ॥ २॥ कदा, सप्तमे दिने, कयंकेनाजिज्ञानेन, मुग्वेविट्पातात, दत्तेनोकं त्वं क्व यास्यसि, गुम-देवझोके ॥ १४॥ तेन सप्टेन रक्षिताः, सप्तदिनानतरं मारणादि चिंतयित्वा, ततः स्वं सर्वं पुरं संशो
ध्यावासे स्थितोऽष्टमदिनज्रमेण वहिरश्वारूढो गुरूणां मारणार्थ गबनगाडवपुश्चिं| ताहितेन वृधमानिकेन पुरीपं कृत्वा कुसुमत्यागः ॥ १५॥ ननुपर्यश्वांहिघातोय
दिमुग्वप्रवेशेन नरकगमनं निश्चित्य बाकरे कुंलिपाकेन मारितः, गुम्वः स्वर्ग 1 गताः, इति दननृपकया ॥ १६ ॥
वळी दने कहा के, नमा अामो जवाब नहीं आप ? यऊन फळ शृं ने ? ने कहो ? न्यार मृत्युन || आश्रीने आचार्यजीप का के, नरकान से न्यारे दने का के, शं हुं नरकमां जश? गुरुए कयु के, एमा 1 शं संदद ? ॥ ५ ॥ न्यारे दने पृछ' के, क्यारे , गुगए कयु मानम दिबसे दने कार्य के केत्री रीन अने ||
Yएंधा गयी: गुमा क मुम्वां विष्टा परवायी; त्यारे इन फररीने पुन्यु के, नं क्यां जश? त्यारे गुहा 16 को के, हुं देवनोकमां नःश ॥१४॥ पछी नई क्रोधायमान थड, मान दिवस बाद गुरुन मारवा आदिकनो ||
विचार करीने त्यां गग्याः पनी नपान आखें नगर साफ करावीने मेलामा स्यो नया बानमा दिवसना भ्रमयी बहार निकली घीमापर ची गुरुन मारवा मारे जवा लाग्यो । पटनामां (मार्गमा) घाणीज ह चिनायी पीमायना एक वृक्ष माजीये काम फरीन नपर पुप्पाची विटाने ढांकी सीधी।। १५॥ नपर घोमाना पग बागवानी | तमांयी विष्टा नछळीन ने दनना मुम्बमां पी, अन नेथी नेना नरके जवानी निश्चय करीन बोकागज़ नन गीगवी मेधावीन मारी नान्यो नया गुरु महाराज म्गे पधार्या; एवीरीन इन राजानी कया जाणवी ।। १६ ॥
श्री उपदेशरत्नाकर