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________________ ये च सुगुर्वादिसामय्यामपि मिथ्यात्वाधशुनधर्मवास न वर्मा से पुनरवान्याः, श्रीकासकमूरिवचनाऽप्रतिबुझतद्नागिनेयतुमिणीनगरीशदत्तनृपादिवत् ॥ १० ॥ ॐ तु. झमिण्यां दत्तनामब्राह्मणमंत्रिणा राज्यं स्वायनीकृत्य जितशत्रुनृपं निष्कास्य स्वयं राज्यं कुर्वता पुण्यार्य बहवो यागाः कृताः ॥ ११ ॥ तत्र मातुलकासकाचार्यागमनमानप्रहिततत्पार्श्वदत्तनृपागमः,धर्मोको यागफलप्रश्ने नृपण कृते, जीवदयाधर्मः, पुनः पृष्ठे हिंसा धुर्गतिहेतुः ॥१२॥ श्री उपदेशरत्नाकर. ................००००००००००००० वही जेा मुगुरु आदिकनी मामग्री मने बने पण मिथ्यात्व आदिक अशुत धर्मनी वासनाने तजता नयी, नो न वामी शकाय तंवा कवाय छ अने तेवा श्रीकानिक मूरिना वचनयी नहीं प्रतिबांध पामता नमना दाणेज एवा तुममिणी नगीना स्वामी दत्तराजा आदिकनी पेठे जाणवा ॥ १० ॥ * नुमिगी नगरीमा दत्त नामना ब्राह्मण मंत्रिए राज्य स्वाधीन करीन, तया जितात्रु राजाने कहामी मुकीने, पाने राज्य करवा मांमयु, तया पुण्य माटे ने घणा यो कर्या ॥१॥ ते नगरम तेना मामा कासकाचार्य पचार्या, त्यारे दन राजानी माए मोकलवायी, नेदन गना तेपनी पामे आयो; धर्म संबंधि चर्चामा याना फळ | माटे गनाए प्रश्न करवायी आचार्यजीए जीवदयामय धर्म को फरीने पृचायी आचार्यजीए कधु के, हिंमा | |ए मुर्गनिनो हेतु ॥१३॥ * आ कया एक प्रनिमा है, अने चीजी प्रतिमा नयी आपी.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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