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तत्र हि जादजवं खानकारि दृश्यते जमदे स्थितऽपि कियत्समयं वहति, परं न कापि जबपरिणतिः, जसव्यपगमे माईवप्रयत्वांकुरोत्पत्त्याद्याक्त्तवनात् ॥ १३ ॥ एवं केचिज्जीवा गुरुक्तं कयागायानोकादि परोपदेशनाद्यर्थ स्वपांडित्यब्यापनार्थ वाऽवधारयंत्यधीयते च, न तु तेषां हृदयेषु किमपि परिणमनि ॥१४ ॥ कषायमिथ्यात्वादि तितिकात्मकमाईवपुण्यमनोरथाद्यनावात, बहुविधकथकनटपुस्तकवनाकवादिव्यासांगारमईकाचार्यादिवत् ॥१५॥ इति ॥
. श्री उपदेशरत्नाकर.
नवी प्राणाधिकामां मजनुं वरसाद ब्रहल कस्तुं पाणी देवाय ॐ परमाद रही गया बाद पण कंत्रीक 8 वार मुधी ने बद्या करे ; पग्नु नेमां जळ व इकतुं नीः अने एबी रीने नळ निकळी गया वादा नेमा कोमळना, जीनाम के अंकुगओनी उन्पत्ति आधिक होः इक नय। ॥ १३ ॥ एवी पीने केटनाक || जीवो गुम्ए कहेयां कया, गाया नया श्लोक आदिक पग्न उपदेश देवा माटे अथवा तो पातानी पंमिना ।। जगाववा माटे धार गम्व , नया जण , परंतु ताना हृदयमा कंद पहा परिणम नयी ॥ १५ ॥ केयके नेोने कपाय, न्या मिथ्याव आदिकने नजवानी साम्प कोमळना नया पवित्र मनोरथ आदिकना ।। अज्ञाय हाय जे; कोनी पेठे? नो के विविध प्रकारनी कथा कहनार नट, पोयी पाहयां गंगणांनी जे वाचनार ज्याम, नया अंगार मर्दक आचार्यनी पवे माएवा ॥ १५ ॥ नि ।