SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एवं योऽन्यस्मिन्नुपदिष्टेऽन्यदनुजापते स्वाभिप्रायानुसार्येव स वधिरकुटुंबपम: यदागमः -- ॥ श‍ ॥ अन्नं पुट्टो अन्नं । जो साहर सो गुरुण वध | न य सीसा जो अन्नं । मुणे अणुजास अन्नं ॥ ३० ॥ इति ॥ कुत्सितो ग्रहः, इदमित्थमेवेत्यायव्यययुक्तत्वादिविचाराऽनपेक्ष एकांता जिनिवेशः सोऽस्यास्तीत्यसौ कुमहान् बोदग्राहकनरवत् तथाहि६- ॥ ३१ ॥ चत्वारो नरा धनार्जनायोत्तरापथे प्राप्ताः उपार्जितधना बाँदी, कुशी: कारयित्वा ताः स्वीकृत्य च स्वदेशप्रति प्रस्थितवंतः ॥ ३२ ॥ एवं रति सेकंड कहवायी. सामो कंड उलग्रेज उत्तर आपले पोताना अभिप्रायन अनुसरनाग बेहरा कुटुंब जंबोज जाए वो आागममां पाक के ॥ २५ ॥ जेने पुत्र, अने ते उत्तर जेजुदो आपके गुम नहीं, पर बेग जवां तेन जावोः की ते शिव्य पण नहीं. के जे अन्य जाएं. अनंतनो उत्तर कई अन्य आप ॥ ३० ॥ इति ॥ कुल्पित जे ग्रह ने कुग्रह कहेवायः अर्थात आपन, ए बाज हानि आवक जावक तथा युक्त अयुक्तपणा त्र्यादिकना विचारनी अपेक्षा कर्श विना एकांत जे कद्राग्रह त वो कुग्रह जेने हाय ते लोक अनार मनुष्यनी पे कट्टेवाः ते उदाहरण कई छे ।। ३१ ।। चार hat कोशी करावी. अने ते लेने १० मनुष्यो धन कमाना माटे उत्तर तरफ चाव्याः धन मेळवीने तथा लोखं पोनानां देश तरफ चाव्या ॥ ३२ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy