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व्याख्यानवाचरपति, आचार्यशिरोमणि, श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजना धर्मोपदेशनेज छे. प्रस्तुत ग्रन्थराजनी महत्ता
अनन्त करुणाना महासागर, त्रय लोकमां जेमना समान कोई उनम नथी एवा महालोकोत्तम, महापुरुष, महाभट्टारक, चरमतीर्थपति, श्रमणभगवान श्री वर्धमानरवामिन आ ग्रन्थराजमां आलेस्थायलं साद्यन्त जीवन, अन्यान्य ग्रन्थकारो द्वारा आलखायेला ते महाप्रभुना जीवनचरित्रो करता अनेक प्रकारनी विशिष्टता घराषनारंछे.
जो के अन्धकारश्रीना बूदना कहेवा अनुसार ज- "त परमेश्वरतुं संपूर्ण जीवन आलेखवा कोइज समर्थ नधी. तो पण, जेतुं रंडाण मपाय तेम नथी एवा प्रवचनरूपी महासागरमाथी कंईक नानकडो अंश लईने आ चरित्र में गूंथ्यू हे" -आ चरित्र पण एक नानकडो अंश जो तो पारी ए.परमतारलन संपूर्ण जीवन के य, महानथीय महान हशे ए विचार पण आनंदविभोर बनाची दे छे. संपादन अंगे
प्रस्तुत ग्रन्थना संपादननी सर्व व्यवस्था, ज्यारे श्रीयुत सुश्रावक प्राणलालभाईना आप्रहधी मारे स्वीकारनी पडी त्यारे आक्षेत्रमा हुँ लगभग नवा जेबो हतो. छताय, आ कार्य अपूर्व कर्मनिर्जरानु के एम समजी में एनो स्वीकार को अने गुरुकृपाना बले हुं आ कार्य पूरु करी शकीश एया विश्वासथी आ कार्य हाथ धर्यु:
आ संपादन करया माटे जेटली प्राचीन हलिखित प्रतिओ अमने मळी शकी, ते अमे मेळवी अने तेना परथी सर्व प्रथम पाठभेदोनो संग्रह को. जैनधर्मप्रसारकसभा द्वारा प्रकाशित दशम पर्वना जे जे पाठो
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।। तेवीस