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आपवानी जाये के फॅशन थई पड़ी छे अने आवा बनी बैठेला विद्वानोन एमनुं आंध अनुयायीप करनाराओ 'दार्शनिक' नी पदवी आपता होय छे.
प्रस्तुत ग्रन्थ, श्री महावीर परमात्माना आत्मिक विकासनी तद्दन प्राथमिक भूमिकाथी आरंभी पूर्णविकास सुधीना तमाम तत्रकाओनुं प्रमाणभूत अने आदर्शरूप निरूपण है. भगवान श्री महावीर परमात्मानो चरित्रांनी अनेक अधिकारी विद्वानोष करेली रचनाओमां, आ रचना, एना अनेक वैशिष्टयोने काएंगे अलग तरी आये एवी छे अनेन वा सम्माने को अपनाओने अनुलक्षीने केटलाक अर्वाचीन विद्वानो करेला विधानो अने पोतानी (कु) मति कल्पनाना उन्मादमां भगवान श्री महावीरदेवना जीवन प्रसंगोनी करेली रजूआत, मानी न शकाय पटली हदे परमात्मानी घोर आशातना करनारी के. अने एबी बकरेली विद्वत्ताना संदर्भमांज प्रस्तावनाने प्रारंभे धूवड अने कविनी दृष्टि ग्रेनो भेद चन्यों है.
खरेवर श्री श्रीतराग परमात्मानी लवना साटेनुं पूर्ण सामर्थ्य कोईनुं य नथी, परन्तु एमनी ए वीतरागताने पामवानी तालवेली धरावती व्यक्ति गंभे तेटली अज्ञान होय तोय, वीतरागने तबबानो एनो अधिकार अबाधितज रहे छे. ज्यारे जेने वीतरागनी वीतरागता तरफ लेश पण आदर न होय, श्री नीर्थकर परमात्माओना दिव्य जीवननी टेकडी उडावतां जेमनी जीभ के कलम अचकार्ड न होय, एवाओने - मूखीओ गमे तेटला पंडित गणता होय तोय-- श्रीवीतराग परमात्माओना पावन जीवन अंगे एक शब्द पण लखवा - बोलवानो अधिकार नवी कारके ए घूबडोनी दृष्टि सत्यना प्रकाशने जीरवी शकती नथी, साचुं समजवानी पात्रता केळवबाने
प्रस्तावना
॥ चौद