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वीतराग श्री अरिहंत परमात्माना अनंत गुणवैभवर्नु वर्णन, ए आवाज पूर्ण प्रकाशन गीन के. प्रस्ताबनाना आरंभे आपला पद्यमांए अनन्त गुणवैभवने वर्णनातीत गणावता कविवर्य, अत्यन्त काव्यात्मक शैलीथी शब्द साधननी मर्यादा समजावे छे. "दृष्टिनी आडे आवता सघळाय अंतरायोनो श्रय थवा छतां श्री कवली भगवंत पण वीतरागना गुणोनो ज्ञानात्मक अनुभव करी झके थे, परन्तु शब्दोमां ए गुणवैभवनी गणना आपबार्नु तमने माटेय अशक्य छे. कल्पान्नकाल मघळांय जलने वमी चूकला महासागरनो रत्नवैभव नजरे जोवा छता मापी न शकाय एबी ए परिस्थिति छे." आ रीते गुणवैभवनी निःसीमता समजाववा छता निर्मल नेत्रवाव्य 'श्री कल्याणमंदिर' ना रचयिता तथा अन्य पण अनेक अधिकारी कवीश्वरोए श्री वीतराग भगवंतना नि:मीम एवा पण गुणवैभवन, मीमित एबा पण शब्दोना माधनथी, वर्णन कर्य ज. गुणोना तीव्र अनुरागधी प्रेराईने शुभाने थयेलो-अपूर्ण एवो पण... आ प्रयत्न आशातना नहि. पण, आराधनानी ज प्रकार . कारणके, पूर्णने सव्या वगर अपूर्ण कदी पण पूर्ण बनी शकेज नहि, आ तो थई 'अधिकारी' सवा अशकतोनी वात. परन्तु 'अनधिकारी' एवा अशक्तोनी वात जूदी ज छे. कारणके प्रकाशना शत्रु, पूर्ण प्रकाशन गीत गाय तोय ए गीत, गीत नथी पण, मयनी विटंबणा छे. गुणानुवादन नामे एबा घूघडो पूर्ण प्रकाशन अपमान करना होय के. दुर्भाग्थे आज काल आवा घूवडो अने नेमना प्रशंसकोनो एक वर्ग ज उभो थयो छे.
'सर्वज्ञ'मां ज शंका धरावनाराओं सर्वज्ञोना चरित्रोनी समालोचनाओ के प्रताबनाओ लखी शकता होय, संसारना रसथी रोमेरोम भीजायेला, श्री वीतरागभगवंताने ओरखावधान साहस खेडता होय छे, पग-माथा चिनाना तो उभा करीने पूर्वाचार्योनी रचनाओ अंग पोताना किंमती (१) अभिप्रायोनी प्रसादी