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इन दोनों पक्षियों को लड़ाई के लिए उद्यत देखकर मैं ही इन्हें प्रेरित कर यहां ले आया था। मुझे क्षमा करें।' (श्लोक २८२-२८५)
__ ऐसा कहकर राजा को स्वस्थ कर वह देव स्वर्ग को चला गया। सामन्त, नृप और अन्य उपस्थित व्यक्ति आश्चर्यान्वित होकर राजा से पूछने लगे-'देव, यह कबूतर और बाज पूर्व जन्म में कौन थे? इनके विरोध का क्या कारण था? और वह देव भी पूर्व जन्म में कौन था ?'
(श्लोक २८६-२८७) मेघरथ ने कहा-'इस जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में श्री के कमलदल-सा पद्मिनीखण्ड नामक एक नगर था । सागरदत्त नामक समुद्र-सा महाधनशाली एक वणिक वहां रहता था। उसकी एक मात्र पत्नी का नाम था विजयसेना। उसके दो पुत्र थे धन और नन्दन । क्रमशः बड़े होते हुए उन्होंने यौवन प्राप्त किया। पिता के धन में गर्वित बने वे अहंकारी होकर नानाविध क्रीड़ाओं में समय व्यतीत करने लगे।
(श्लोक २८८-२९१) ___ 'एक दिन वे सागरदत्त को प्रणाम कर बोले-'पिताजी, आदेश दीजिए, हम वाणिज्य के लिए विदेशों में जाएँ ।' यह सुनकर आनन्दित हुए सागरदत्त ने उन्हें विदेश जाने की अनुमति दे दी। पुत्र जब बड़ा होकर पिता की सहायता करता है तो उससे अधिक आनन्द पिता के लिए अन्य नहीं हो सकता। वे बहुत-सा पण्य द्रव्य लेकर सार्थवाह सहित क्रमशः नासपुर नामक एक वृहद् नगर में पहुंचे। वहां व्यवसाय करते हुए उन्हें कुत्ते के एक मांसखण्ड की तरह एक महाघे रत्न प्राप्त हुआ। उसी रत्न के लिए क्रुद्ध होकर वे वन्य वृषभ की तरह परस्पर शङ्ख नदी के किनारे मार-पीट करने लगे। इसी मार-पीट में वे दोनों जल में गिर गए और उसी क्षण मृत्यु को प्राप्त हो गए। लोभ से किसकी मृत्यु नहीं होती ? मृत्यु के पश्चात् वे दोनों भाई इन्हीं पक्षियों के रूप में उत्पन्न हुए। पूर्व जन्म के वैर के कारण वे इस जन्म में भी परस्पर शत्रु बन गए ।
(श्लोक २९२-२९८) 'इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह के अलङ्कार-स्वरूप रमणीय नामक विजय में सीता नदी के दक्षिण तट पर शुभा नामक एक नगरी थी। उसी नगरी में आज के पञ्चम भव पूर्व में राजा सुमितसागर का अपराजित नामक एक पुत्र था। मैं बलदेव था