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ये यहाँ से मुनि भोगवर्द्धन के पास जाकर दीक्षा ग्रहण करेंगे और कर्मक्षय कर मोक्ष प्राप्त करेंगे ।
(श्लोक १५२-१५९) यह सुनकर दोनों विद्याधर कुमार प्रकट हुए और पूर्व की तरह ही स्वयं को उनका पुत्र समझ कर घनरथ को प्रणाम कर स्वगृह लौट गए।
(श्लोक १६०) __ जब उन मुर्गों ने यह बात सुनी तो वे मन ही मन सोचने लगे, हाय, यह संसार कितना भय और क्लेश से पूर्ण है। हमने जीवन में वणिक रूप से ऐसा कुछ उपार्जन नहीं किया जिससे और तो क्या पुनः मनुष्य जन्म प्राप्त न कर सके ? क्योंकि मनुष्य जन्म लाभ ऐसे ही दुष्कर है। उस मनुष्य जीवन को तो हमने आखेटी की तरह लोभी और निष्ठुर बनके दूसरों को ठगकर व्यर्थ ही नष्ट किया। कम नाप व कम तौल से केवल अन्य को ही नहीं ठगा, स्वयं भी परस्पर झगड़ा किया है और आर्त ध्यान में मरकर पशुयोनियाँ प्राप्त की हैं । धिक्कार है हमको ! (श्लोक १६१-१६५)
ऐसा सोचकर उन्होंने मेघरथ को प्रणाम कर उनसे कहा'देव, अब हमें बताएँ, हम अपना उद्धार कैसे करेंगे ?' .
(श्लोक १६६) अवधिज्ञान से उनका भविष्य जानकर मेघरथ उन्हें बोला'अहंत देव, निर्ग्रन्थ गुरु और जिन प्ररूपित दयामय धर्म की शरण ग्रहण करो। उसी से तुम्हारा कल्याण होगा।' (श्लोक १६७)
यह सूनकर मुर्गों ने वहीं संवेग को प्राप्त कर अनशन में मृत्यु प्राप्त की। मृत्यु के पश्चात् वे भूतरत्ना अरण्य में ताम्रचूल और सुवर्णचूल नामक दो महद्धिक भूत-नायक के रूप में उत्पन्न हुए। अवधिज्ञान से अपना पूर्व भव ज्ञात हो जाने से विमान में बैठकर वे अपने पूर्व जन्म के उपकारी युवराज मेघरथ के पास गए। वे मेघरथ को प्रणाम कर बोले
(श्लोक १६८-१७१) 'आपकी कृपा से हम व्यन्तर योनि में उत्पन्न हुए हैं। हम अपने कर्मानुसार पूर्व जन्मों में मनुष्य, हस्ती, महिष, मेष और अन्त में मुर्गे के रूप में पूर्ण आयुष्य लेकर जन्मे थे। मुर्गे के जन्म में न जाने हमने कितने कीटों का भक्षण किया। हमारी तो न जाने क्या दुर्गति होती यदि आप हमारी रक्षा नहीं करते ? हे देव, हम पर दया कर अनुग्रह करें । इस विमान पर चढ़कर समस्त पृथ्वी को