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प्राप्त होती है ।
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( श्लोक ८१-९३) 'इसी ऐरावत क्षेत्र के सुवर्णकुला नदी तट पर वे ताम्र कलश और कंचन कलश नामक हस्ती रूप में जन्मे । बड़े होने पर सातगुणा मदक्षरण से मतवाले होकर वे वृक्षादि छेदन - भेदन करते हुए उसी नदी तट पर स्वयूथ सहित इधर-उधर विचरते हुए एक दिन एक दूसरे को देखा । अपने प्रतिबिम्ब के भ्रम में पूर्व जन्म के द्वेष के कारण दोनों के मन में क्रोध उद्दोप्त हो गया और दावाग्नि प्रज्ज्वलित पर्वत की तरह एक दूसरे की ओर दौड़े । बहुत देर तक सूड़ों से, दाँतों से परस्पर युद्ध करते हुए दूसरे जीवन में फिर युद्ध करेंगे, कहते हुए वहीं मर गए । (श्लोक ९४-९८ ) 'जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की अयोध्या नगरी में पशुपालक नन्दीमित रहता था । उन्होंने उसके भैसों के दल में भैंसा रूप में जन्म ग्रहण किया । बड़े होने पर उन्होंने हस्ती शिशु का आकार ग्रहण किया । राजा शत्रु जय और देवानन्दा के पुत्र धनसेन और नन्दीसेन ने एक दिन उन दोनों सुन्दर भैंसों को देखा । कौतुहलवश उन्होंने उन्हें परस्पर लड़ने को नियुक्त किया । ( श्लोक ९९-१०२ ) 'बहुत देर तक लड़ने के पश्चात वे महाकाल नामक भेड़ों के रूप में उत्पन्न हुए ?
मर
गए और कालएक दिन एक दूसरे
को देखकर पूर्व जन्म के वैर के कारण परस्पर लड़ना प्रारम्भ किया और लड़ते-लड़ते मरकर इस जन्म में शक्तिशाली मुर्गों के रूप में जन्में हैं । इसके पूर्व भी उन्होंने एक दूसरे को देखकर पूर्व जन्म के वैर के कारण परस्पर लड़ना प्रारम्भ किया और लड़तेलड़ते मरकर इस जन्म में शक्तिशाली मुर्गों के रूप में जन्में हैं । इसके पूर्व भी वे एक दूसरे को हरा नहीं सके थे और आज भी किसी को नहीं हरा सकेगा ।' ( श्लोक १०३ - १०५)
धनरथ की बात समाप्त होने पर मेघरथ बोले- 'ये केवल
इनमें विद्याधर प्रविष्ट घनरथ ने भौंहें चढ़ाकर विनीत भाव से तब मेघरथ
पूर्व जन्म के वैर के कारण ही नहीं लड़ते, होकर इन्हें लड़ा रहा है।' यह सुनकर मेघरथ की ओर देखा । करवद्ध होकर
ने
कहना प्रारम्भ किया
( श्लोक १०६ - १०७ ) बैताढ्य नामक पर्वत की
'इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में उत्तर श्रेणी पर स्वर्णनाभ नामक एक नगरी थी। गरुड़ से